डर लगता है अपने साये से भी अब
बदल गयी वक़्त की चाल भी अब
महफूज थी जो कल तलक
भयभीत है वो अस्मत आजकल
हैवानियत की नयी भाषा गढ़ी जिन्होंने
कब निकल आये उन दरिंदो के पर
सोच के इस डर को
अब अपने साये से भी लगने लगा है डर
कुदरत भी उनके डर से थर्रा रही
शरमों हया से लज्जा रही
मूकदर्शक बनी
आँखों ही आँखों आँसू बहा रही
विवश है किस्मत बेचारी
अस्मत की रक्षा खातिर
डर रही आज अपने साये भी नारी
बदल गयी वक़्त की चाल भी अब
महफूज थी जो कल तलक
भयभीत है वो अस्मत आजकल
हैवानियत की नयी भाषा गढ़ी जिन्होंने
कब निकल आये उन दरिंदो के पर
सोच के इस डर को
अब अपने साये से भी लगने लगा है डर
कुदरत भी उनके डर से थर्रा रही
शरमों हया से लज्जा रही
मूकदर्शक बनी
आँखों ही आँखों आँसू बहा रही
विवश है किस्मत बेचारी
अस्मत की रक्षा खातिर
डर रही आज अपने साये भी नारी
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात
Thanks sir .
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