कब तलक
अपनी परछाइयों से भागता फिरू मैं
खुद में खुदा तलाशता फिरू मैं
चेतना शून्य के भँवर में
भटकता फिरू मैं
असहनीय पीड़ा कष्ट
नासूर बन चुभ रहा जो दिल में
कब तलक उससे
मर मर जिन्दा रहू मैं
कब तलक
उन जड़ों में अपनी जड़े तलाशता रहू मैं
जिनका कोई अस्तित्व नहीं
कब तलक
उनमे जीवन तलाशता फिरू मैं
अपनी परछाइयों से भागता फिरू मैं
खुद में खुदा तलाशता फिरू मैं
चेतना शून्य के भँवर में
भटकता फिरू मैं
असहनीय पीड़ा कष्ट
नासूर बन चुभ रहा जो दिल में
कब तलक उससे
मर मर जिन्दा रहू मैं
कब तलक
उन जड़ों में अपनी जड़े तलाशता रहू मैं
जिनका कोई अस्तित्व नहीं
कब तलक
उनमे जीवन तलाशता फिरू मैं
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