दुश्मनों मैं दोस्त तलाशता रहा
शैतानों के बीच खुदा तलाशता रहा
गुमनामी की गलियों से निकलने को
रोशनी की किरण तलाशता रहा
छिटक हाथ भटक गया उस राह
गर्त की काली स्याह में जिधर
अस्त हो रही जीवन की छावं भी
दलदल इतना गहरा
खिंच रखी जड़ों की छोर भी
लहुलुहान हो थक गया
हौसला पस्त होते होते रुक गया
उम्मीद जगने लगी फिर से
नजर आने लगी जब
उज्जाले का किरण फिर से
शैतानों के बीच खुदा तलाशता रहा
गुमनामी की गलियों से निकलने को
रोशनी की किरण तलाशता रहा
छिटक हाथ भटक गया उस राह
गर्त की काली स्याह में जिधर
अस्त हो रही जीवन की छावं भी
दलदल इतना गहरा
खिंच रखी जड़ों की छोर भी
लहुलुहान हो थक गया
हौसला पस्त होते होते रुक गया
उम्मीद जगने लगी फिर से
नजर आने लगी जब
उज्जाले का किरण फिर से
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