तुम कुछ कहती तो मैं कुछ सुनता
सारी रात यूही करवटें ना बदलता
नींद कहा आँखों में थी
सपने की रात गुजर जाने को थी
खामोश मगर मग्न
ना जाने तुम क्या विचार रही थी
नई नवेली दुल्हन जैसे शरमा रही थी
बाहों को तेरे आगोश की आस थी
पर रात ढल जाने को बेताब थी
बेकरार निंद्रा भी थी
पर आँखों में कहा उसकी परछाई थी
करवटों में रात खोने को लाचार थी
सुबह की लालिमा उदय होने को त्यार थी
सारी रात यूही करवटें ना बदलता
नींद कहा आँखों में थी
सपने की रात गुजर जाने को थी
खामोश मगर मग्न
ना जाने तुम क्या विचार रही थी
नई नवेली दुल्हन जैसे शरमा रही थी
बाहों को तेरे आगोश की आस थी
पर रात ढल जाने को बेताब थी
बेकरार निंद्रा भी थी
पर आँखों में कहा उसकी परछाई थी
करवटों में रात खोने को लाचार थी
सुबह की लालिमा उदय होने को त्यार थी
बढिया
ReplyDeleteअच्छी रचना