हुई मोहब्बत जो शराब से
हर जाम एक गजल बन गयी
हर शाम एक कविता बन गयी
आलम नशे का ऐसा चढ़ा
मधुशाला महबूबा बन गयी
सुरूर था सूरा का
लगी जो होटों से
संगिनी आखरी साँसों की हो गयी
बिन जाम कोई ना सहारा था
जीने का कोई ना बहाना था
यह वफ़ा की मिशाल थी
यारी इसकी बेमिशाल थी , बेमिशाल थी
हर जाम एक गजल बन गयी
हर शाम एक कविता बन गयी
आलम नशे का ऐसा चढ़ा
मधुशाला महबूबा बन गयी
सुरूर था सूरा का
लगी जो होटों से
संगिनी आखरी साँसों की हो गयी
बिन जाम कोई ना सहारा था
जीने का कोई ना बहाना था
यह वफ़ा की मिशाल थी
यारी इसकी बेमिशाल थी , बेमिशाल थी
No comments:
Post a Comment