Wednesday, October 10, 2012

अभिव्यक्ति

अभिव्यक्ति के सपंदन मात्र से

लहर वो चली आयी 

आगोश में मानो जैसे जन्नत चली आयी

ये आरधना का असर था

या प्रार्थना का स्पर्श था

पर पुलिंदा विचारों का

व्यर्थ का अनर्थ था

ओजस्व वाणी के आगे जैसे

समस्त जन नतमस्तक था

स्वतंत्र धारा की इस वेग का

सृजन अभिव्यक्ति के गर्भगृह में ही छुपा था 

No comments:

Post a Comment