अभिव्यक्ति के सपंदन मात्र से
लहर वो चली आयी
आगोश में मानो जैसे जन्नत चली आयी
ये आरधना का असर था
या प्रार्थना का स्पर्श था
पर पुलिंदा विचारों का
व्यर्थ का अनर्थ था
ओजस्व वाणी के आगे जैसे
समस्त जन नतमस्तक था
स्वतंत्र धारा की इस वेग का
सृजन अभिव्यक्ति के गर्भगृह में ही छुपा था
लहर वो चली आयी
आगोश में मानो जैसे जन्नत चली आयी
ये आरधना का असर था
या प्रार्थना का स्पर्श था
पर पुलिंदा विचारों का
व्यर्थ का अनर्थ था
ओजस्व वाणी के आगे जैसे
समस्त जन नतमस्तक था
स्वतंत्र धारा की इस वेग का
सृजन अभिव्यक्ति के गर्भगृह में ही छुपा था
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