अपनी जमीं तलाश रहे कदम
पेड़ों के झुरमुट में
जड़े अपनी तलाश रहे नयन
नाता जुड़ा खोख से जैसे कोई
वैसे अपनी जड़े तलाश रहे कदम
कौन सी थी वो छत्र छाया
पड़ी जहाँ कदमों की साया
बिसरे अतीत की छावं से
बिछुड़ ना जाए ये साया
निशाँ पड़े थे जहा पर
गर्त पड़ी थी वह पे
कदमों में जैसे बिच्छे पड़े थे तीर
पलकों में जैसे कैद नयनो के नीर
राह भटके ना फिर कभी
तलाश रहे कदम अपनी जमीं की मित
पेड़ों के झुरमुट में
जड़े अपनी तलाश रहे नयन
नाता जुड़ा खोख से जैसे कोई
वैसे अपनी जड़े तलाश रहे कदम
कौन सी थी वो छत्र छाया
पड़ी जहाँ कदमों की साया
बिसरे अतीत की छावं से
बिछुड़ ना जाए ये साया
निशाँ पड़े थे जहा पर
गर्त पड़ी थी वह पे
कदमों में जैसे बिच्छे पड़े थे तीर
पलकों में जैसे कैद नयनो के नीर
राह भटके ना फिर कभी
तलाश रहे कदम अपनी जमीं की मित
अच्छी रचना
ReplyDeleteThanks
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