नफरत का कोहरा ऐसा छाया
विलुप्त हो गयी प्यार की भाषा
अपने ही अपनों के दुश्मन
घृणा होड़ का पसरा ऐसा साया
तरकश कटारी बाण से ज्यादा
पैनी हो गयी जुबाँ की भाषा
यकीन एतबार का उठ गया साया
नफरत का जो तूफां आया
पसर गयी जैसे अमवास की छाया
छंट गया जैसे विश्वास का साया
सही गलत सब हो गए बेमान
हर इंसां हो गया नफरत का शिकार
जमीर की तो अब करो ना बात
लहू हो गया पानी सामान
विलुप्त हो गयी प्यार की भाषा
अपने ही अपनों के दुश्मन
घृणा होड़ का पसरा ऐसा साया
तरकश कटारी बाण से ज्यादा
पैनी हो गयी जुबाँ की भाषा
यकीन एतबार का उठ गया साया
नफरत का जो तूफां आया
पसर गयी जैसे अमवास की छाया
छंट गया जैसे विश्वास का साया
सही गलत सब हो गए बेमान
हर इंसां हो गया नफरत का शिकार
जमीर की तो अब करो ना बात
लहू हो गया पानी सामान
bahut sundar srijan, badhai.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें , आभारी होऊंगा.
Shukria .
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