मंदिर की जीन्ने चढू कैसे
हाथ रंगे है खूनी दरिन्दे से
स्वार्थ सिद्ध के लिए
नाता तोड़ लिया
ना जाने कितने संस्कारों से
आत्ममंथन करूँ कैसे
गिरवी रख दी दिल की आवाज़
झूठी शान के लिए
छटपटा रहा हूँ
पर उड़ू कैसे
कतरे पर इन्ही हाथ दरिन्दों ने
इन्ही हाथ दरिन्दों ने !!
हाथ रंगे है खूनी दरिन्दे से
स्वार्थ सिद्ध के लिए
नाता तोड़ लिया
ना जाने कितने संस्कारों से
आत्ममंथन करूँ कैसे
गिरवी रख दी दिल की आवाज़
झूठी शान के लिए
छटपटा रहा हूँ
पर उड़ू कैसे
कतरे पर इन्ही हाथ दरिन्दों ने
इन्ही हाथ दरिन्दों ने !!
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