निखरती गयी चाँदनी
ज्यूँ ज्यूँ चन्दा बड़ता गया
आँचल के गर्भ गृह से निकल
यौवन मधुशाला रोशन करता गया
छिटकती किरणों से आफताब ऐसा रोशन हुआ
शबनमी बूंदों सा आभा गुलाल खिलता गया
रूप लावण्य ऐसा सुन्दर निखरा
ज़माना मदहोश होता चला गया !!
ज्यूँ ज्यूँ चन्दा बड़ता गया
आँचल के गर्भ गृह से निकल
यौवन मधुशाला रोशन करता गया
छिटकती किरणों से आफताब ऐसा रोशन हुआ
शबनमी बूंदों सा आभा गुलाल खिलता गया
रूप लावण्य ऐसा सुन्दर निखरा
ज़माना मदहोश होता चला गया !!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति, बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
sure and thanks a lot .
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