RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Saturday, September 22, 2012
खुदगर्ज
खुदगर्ज
तुम
भी
थी
यह
मालूम
ना
था
बेवफा
किस्मत
थी
यह
समझ
नहीं
था
लुट
गए
तेरे
हाथों
जो
कभी
सोचा
ना
था
क्यों
एतबार
किया
तुमपे
हमको
ए
मालूम
ना
था
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