दिवा स्वप्न था कोई
सुन्दर कविता बने कोई
हर लफ्जों में जिसकी
बसी हो सरस्वती वंदना कही
जो मौन रहे तब भी
छू ले ह्रदय तार कही
प्रेरणा हो वो जीने की जैसे कोई
सप्तरंगो में रंगी
मधुर बोलो से सजी
सुन्दर कविता बने कभी
दिवा स्वप्न जो था कोई
सच हो वो खाब्ब कभी
सुन्दर कविता बने कोई
हर लफ्जों में जिसकी
बसी हो सरस्वती वंदना कही
जो मौन रहे तब भी
छू ले ह्रदय तार कही
प्रेरणा हो वो जीने की जैसे कोई
सप्तरंगो में रंगी
मधुर बोलो से सजी
सुन्दर कविता बने कभी
दिवा स्वप्न जो था कोई
सच हो वो खाब्ब कभी
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