RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Monday, August 13, 2012
लाचार जिन्दगी
अकेलेपन की तनहाइयों में
जिन्दगी
गुजरे कल में खो गयी
दायरा सिमट गया
झर झर नयन स्वत: ही बह पड़े
आंसुओ की माला
यादों की बारात बन गयी
इस परछाई के संग जीने को
जिन्दगी लाचार हो गयी
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