RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Thursday, August 2, 2012
जन्नत का द्वार
मदिरालय की सीढ़ी चढूं
या शिवालय की चौखट चुमू
कदम कह रहे है
जन्नत की जिन्ने चढूं
ना मयखाने में वो आग है
ना मंदिर में सुप्रकाश है
स्वर्ग के द्वार खुले
लिए फूलों के हार है
डगर
यह आसान नहीं
क्योंकि मृत्यु ही जन्नत का द्वार है
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