सागर की तलहट्टी
जैसे कोई सपनों की नगरी
स्वछन्द विचरण करती
तरह तरह की जल परियां
मुस्का रही हो मानों जैसे
खिलखिलाती सपनों की दुनिया
गहरे नीले पानी में समाई
जैसे तिल्सिम भरी काल्पनिक दुनिया
कह रही हो कुदरत मानों
जैसे यह है मेरी जादुई दुनिया
Wednesday, July 25, 2012
Saturday, July 21, 2012
पगली
क्या हुआ जो जुदा हो गयी
छोड़ अपनी दुनिया तन्हा हो गयी
सुनी किसने दिल की फ़रियाद है
इन्साफ कहाँ
ह़र तरफ आंसुओ का सैलाब है
करली पार जिसने ऐ तरणी
जीत गयी मानो जैसे कोई पगली
छोड़ अपनी दुनिया तन्हा हो गयी
सुनी किसने दिल की फ़रियाद है
इन्साफ कहाँ
ह़र तरफ आंसुओ का सैलाब है
करली पार जिसने ऐ तरणी
जीत गयी मानो जैसे कोई पगली
Wednesday, July 18, 2012
अरमानों के रंग
उड़ रही जिन्दगी की पतंग
लगा सपनों के पंख
रंग बी रंगों से रंगी
कर रही अटखेलियाँ
इन्द्रधनुषी रंगों के रंग
जीवन साँसों ने थाम रखी
जैसे इसकी डोर
कटने से पहले भरने इसमें
सच्चे सपनों के रंग
उड़ा इसे पूरे करने
जीवन अरमानों के रंग
जीवन अरमानों के रंग
लगा सपनों के पंख
रंग बी रंगों से रंगी
कर रही अटखेलियाँ
इन्द्रधनुषी रंगों के रंग
जीवन साँसों ने थाम रखी
जैसे इसकी डोर
कटने से पहले भरने इसमें
सच्चे सपनों के रंग
उड़ा इसे पूरे करने
जीवन अरमानों के रंग
जीवन अरमानों के रंग
Monday, July 16, 2012
Saturday, July 14, 2012
गुमनाम
किसीने कभी ऐ ना जाना
हाले दिल हमारा पहचाना
जिसे हुस्न पे मर मिटे थे
वो मुमताज महल कहा है
चुना दी थी जिसके लिए मोहब्बत
दिले दरों दीवार
दफ़न कर दीये थे
सुलगते दिलों के अरमान
कहा खो गयी उस गुमनाम की पहचान
हाले दिल हमारा पहचाना
जिसे हुस्न पे मर मिटे थे
वो मुमताज महल कहा है
चुना दी थी जिसके लिए मोहब्बत
दिले दरों दीवार
दफ़न कर दीये थे
सुलगते दिलों के अरमान
कहा खो गयी उस गुमनाम की पहचान
Thursday, July 12, 2012
खुशबू
निकली थी आप जिसे गली
भटक रहा हु उस गली
महक आपकी छिटक रही
आपके चले जाने के बाद भी
उस गली ओ महजबी
ढाई आखर का ए काम है
पैगाम ए आपके नाम है
महरूम हो गया खुद से
घुल गयी साँसों में
आपकी खुशबू की महताब है
भटक रहा हु उस गली
महक आपकी छिटक रही
आपके चले जाने के बाद भी
उस गली ओ महजबी
ढाई आखर का ए काम है
पैगाम ए आपके नाम है
महरूम हो गया खुद से
घुल गयी साँसों में
आपकी खुशबू की महताब है
Tuesday, July 10, 2012
उदासी
हुस्न ने पूछा जिन्दगी से
तू इतनी उदास क्यों है
कहा जिन्दगी ने
ढल गयी जवानी तुम्हारी
अब दरकार नहीं तुम्हारी
छोड़ अब तुझे जाना है
आशियाँ नया बसना है
संग तेरे जो पल बिताएं
यह उदासी उन्ही यादों का साया है
तू इतनी उदास क्यों है
कहा जिन्दगी ने
ढल गयी जवानी तुम्हारी
अब दरकार नहीं तुम्हारी
छोड़ अब तुझे जाना है
आशियाँ नया बसना है
संग तेरे जो पल बिताएं
यह उदासी उन्ही यादों का साया है
ख्वाहिसे
जिन्दगी कभी इतनी कम लगती है
खुद से शिकायत करती है
एक पल नसीब नहीं
खुद को जीने के लिए
ढल गयी जिन्दगी
औरों को खुश रखने में
सफ़र के इस पल में
मिली ना फुर्सत एक पल के लिए
अधूरी रह गयी ख्वाहिसे
दफ़न हो गयी शिकायतें
खुद से शिकायत करती है
एक पल नसीब नहीं
खुद को जीने के लिए
ढल गयी जिन्दगी
औरों को खुश रखने में
सफ़र के इस पल में
मिली ना फुर्सत एक पल के लिए
अधूरी रह गयी ख्वाहिसे
दफ़न हो गयी शिकायतें
किताब
किताब जिन्दगी की रंगीन थी
पर वो किताब अधूरी थी
कुछ पृष्ट रिक्त थे
चाह कर भी जिनमे रंग ना भर पाया
मुस्कराहट के पीछे छिपे आंसुओ को
शब्दों में वयां ना कर पाया
किताब के ह़र पन्ने को भर ना पाया
पर वो किताब अधूरी थी
कुछ पृष्ट रिक्त थे
चाह कर भी जिनमे रंग ना भर पाया
मुस्कराहट के पीछे छिपे आंसुओ को
शब्दों में वयां ना कर पाया
किताब के ह़र पन्ने को भर ना पाया
अत्याचार
अत्याचार सहने की इंतहा हो गयी
जुबाँ जो अब तलक खामोश थी
एकाएक बोल उठी
इस कदर ढाये तुमने जिल्मों सितम
नफरत की चिंगारी
सीने में धधक उठी
आवेश के आगोश में
चिंगारी शोला बन आँखों से फुट पड़ी
ह़र दरों दीवार तोड़ बोल चीख पड़ी
अब ना अश्रु बहेंगे
ना जुलोम सितम सहेंगे
सबक ऐसा देंगे
खुद अपने आपसे नफरत करने लगेंगे
जुबाँ जो अब तलक खामोश थी
एकाएक बोल उठी
इस कदर ढाये तुमने जिल्मों सितम
नफरत की चिंगारी
सीने में धधक उठी
आवेश के आगोश में
चिंगारी शोला बन आँखों से फुट पड़ी
ह़र दरों दीवार तोड़ बोल चीख पड़ी
अब ना अश्रु बहेंगे
ना जुलोम सितम सहेंगे
सबक ऐसा देंगे
खुद अपने आपसे नफरत करने लगेंगे
पहचान
कांटे गुलाब की पहचान है
घटाएं बारिस का आगाज है
धड़कने दिल का पैगाम है
बुरे वक़्त ही सच्चे दोस्त की पहचान है
घटाएं बारिस का आगाज है
धड़कने दिल का पैगाम है
बुरे वक़्त ही सच्चे दोस्त की पहचान है
पल
कुछ पल तनहाइयों में गुजर गए
कुछ पल प्यार समझने को गुजर गए
जो पल बचे वो सिकवा शिकायत में गुजर गए
पर आंसू बहाने को
खुद को एक पल भी ना मिला
तलाशते रहे जिस पल को
वो पल कभी ना मिला
कुछ पल प्यार समझने को गुजर गए
जो पल बचे वो सिकवा शिकायत में गुजर गए
पर आंसू बहाने को
खुद को एक पल भी ना मिला
तलाशते रहे जिस पल को
वो पल कभी ना मिला
Wednesday, July 4, 2012
दृष्टिहीन समाज
दृष्टिहीन समाज हमारा
सुरसा की तरह बड़ रही
सवालों की छाया
फैला अँधियारा दूर तक
दिग्भ्रमित हो
भटक रहे नौ निहालों के कदम
गर्त समा रही चेतना सारी
स्वार्थ भावना से
संसय बनी कमजोरी हमारी
इस काल चक्र ने
बदल दिया सम्पूर्ण रूप
विभस्त हो गया समाज का स्वरुप
विभस्त हो गया समाज का स्वरुप
सुरसा की तरह बड़ रही
सवालों की छाया
फैला अँधियारा दूर तक
दिग्भ्रमित हो
भटक रहे नौ निहालों के कदम
गर्त समा रही चेतना सारी
स्वार्थ भावना से
संसय बनी कमजोरी हमारी
इस काल चक्र ने
बदल दिया सम्पूर्ण रूप
विभस्त हो गया समाज का स्वरुप
विभस्त हो गया समाज का स्वरुप
Tuesday, July 3, 2012
मिथ्या जग
मिथ्या जग सारा
बनावटी मुखोटा सारा
मुखोटे में छिपी मोह माया
दूर तक नहीं सत्य का साया
मिथ्या जग सारा
तन भी नश्वर
भस्म है ईश्वर
सत्य सिर्फ मौत का साया
बाकी मिथ्या जग सारा
बनावटी मुखोटा सारा
मुखोटे में छिपी मोह माया
दूर तक नहीं सत्य का साया
मिथ्या जग सारा
तन भी नश्वर
भस्म है ईश्वर
सत्य सिर्फ मौत का साया
बाकी मिथ्या जग सारा
Monday, July 2, 2012
एक सवाल
मुझसे जिन्दगी इतनी नाराज क्यों है
खफा खफा सी ह़र बात क्यों है
बार बार ह़र बार
शिकस्त ही क्यों इस नसीब में है
आखिर क्या वो बात है
कीया सारा बेकार है
नीरस हो निराश हो गयी जिन्दगी
अब तो ह़र बात एक नया व्यवधान है
जिन्दगी मेरे लिए
इम्तिहान से ज्यादा एक सवाल है
खफा खफा सी ह़र बात क्यों है
बार बार ह़र बार
शिकस्त ही क्यों इस नसीब में है
आखिर क्या वो बात है
कीया सारा बेकार है
नीरस हो निराश हो गयी जिन्दगी
अब तो ह़र बात एक नया व्यवधान है
जिन्दगी मेरे लिए
इम्तिहान से ज्यादा एक सवाल है
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