सूरज की तपिश तन झुलसाए
पैरों में छाले पड़ते जाये
मंजिल कहीं पीछे ना छुट जाये
नंगे कदम दौड़ा चला जा रहा हु
कांटे पत्थर चुभते जाये
लहुलुहान जिस्म होता जाये
कदम कहीं थक ना जाये
नंगे कदम दौड़ा चला जा रहा हु
पाने को आतुर
छूने को व्याकुल
करने सपने को साकार
नंगे कदम दौड़ा चला जा रहा हु
No comments:
Post a Comment