गुजरा बचपन जीन गलियों में
रूह बस्ती है उन पगडंडियों में
बात उस शहर की थी बड़ी निराली
हार पेड़ पोधो से थी पहचान हमारी
गली मोहलो की थी शान निराली
हँसी ठिठोली में गुजर जाती थी शाम सुहानी
खुले आसमां तले
तारे गिन गिन
सपनों में खो जाती थी रात सयानी
बस गयी इन सबों में रूह हमारी
गुजर गया बचपन
छुट गया शहर संगी साथी
पर रह गयी यादें वही कही भटकती
रूह बस्ती है इनमे जैसे हमारी
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