RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Saturday, February 18, 2012
बंजर भूमि
बंजर भूमि सावन को तरसे
कण कण पानी को तरसे
बादल छाये पर मेघा ना बरसे
खो गयी वो बसंती बहार
गुम हो गयी वो कोयल की पुकार
तरस रही धरती बूंद बूंद को
कर रही मेघों का इन्तजार
कर रही मेघों का इन्तजार
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