RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Saturday, January 7, 2012
ख़ामोशी
तलाशी जिन्दगी जहा
मिली मुर्दों की कब्र वहा
मरघट की सी ख़ामोशी
परसी थी वीरानगी वहा
सिरहन रही थी आँखे
उखड रही थी साँसे
भयावह मंजर ने
फैला रखी थी
जैसे बाहें
कह रही हो जैसे
छोटी सी होती है जिंदगानी
पर बड़ी सी होती है रातें
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