असमंजस में घिरी विचारों की ध्वनि
मंथन किया शब्दार्थ का
बड़ गयी बैचनी भारी
अंतर भावार्थ से बदल गयी मौलिक अभिवैक्ती
उलझन भरे द्वन्द में तब कोंधी
रौशनी बन एक युक्ति
कठिन समय संयम करनी होगी
भावनाओ की स्थिथि
छट जायेंगे असमंजस के बादल
खुल जायेगी विचारों की गुंथी
मिल जायेगा हल
ओर पहेली के भंवर से निकल आएगी
विचारों की कस्ती
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