RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Tuesday, December 20, 2011
जाम
मधुशाला जाते है हम तो
जाम छलकाने को
साकी रूठ ना जाये कहीं
इसलिए लबों से लगाने को
भुला सारी दुनिया
आगोश में इसकी समाने को
भटकती रूह को
इसकी मदहोशी में डुबाने को
मधुशाला जाते है हम तो
जाम छलकाने को
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