RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Friday, October 14, 2011
अंगीकार
गल हार बन जाऊ
माथे की बिंदिया बन जाऊ
सिंदूर बन मांग में सज जाऊ
करले तू अंगीकार
धड़कन बन दिल में बस जाऊ
काजल बन जाऊ
आँखे बन जाऊ
लहू बन नस नस में समा जाऊ
करले तू अंगीकार
प्यार बन साँसों में घुल जाऊ
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