RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Wednesday, September 28, 2011
मैं
वसुंधरा का गुल हु मैं
महके
चमन जिससे
धरा का वो फूल हु मैं
पवन की वेग हु मैं
खिले चमन जिससे
रौशनी का वो आफताब हु मैं
ओस की शबनम हु मैं
लहलहाए चमन जिससे
बारिस की वो बूंद हु मैं
जीवन का अहसास हु मैं
गूंजे चमन जिससे
धड़कन की वो जान हु मैं
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