Wednesday, September 28, 2011

मैं

वसुंधरा का गुल हु मैं

महके चमन जिससे

धरा का वो फूल हु मैं

पवन की वेग हु मैं

खिले चमन जिससे

रौशनी का वो आफताब हु मैं

ओस की शबनम हु मैं

लहलहाए चमन जिससे

बारिस की वो बूंद हु मैं

जीवन का अहसास हु मैं

गूंजे चमन जिससे

धड़कन की वो जान हु मैं

Tuesday, September 27, 2011

वेदना

खामोश लफ्ज सहमी आँखे

वेदना जो अभिव्यक्त करती है

मन मस्तिष्क को झिझोर जाती है

आघात दिल को ऐसा दे जाती है

जड़ चेतना शून्य हो जाती है

ओर ग़मों के दायरे में जीवन भर के लिए

दर्द का दामन थामा जाती है

Saturday, September 24, 2011

अनमोल माँ

बंटवारा हुआ जब घर का

कहा एक रिश्तेदार ने

भाई को मिली अपार धन दौलत

तुमको मिली सिर्फ आस

कहा मैंने , सुनो ए रिश्तेदार

सबसे अनमोल '' माँ '' मिली है मुझको , नादान

तुम क्या समझोगे

इसके आगे सारी दौलत है बेकार

खामोश आँखे

खामोश आँखे ढूंड रही साँसे

साज मिले सुर से

कह रही साँसे

टूटे दिल को मिले प्यार भरी राहें

कह रही साँसे

बेकरार दिल तलाश रहा बाहें

खामोश आँखे ढूंड रही साँसे

मासूम मन

मासूम मन तब बहला था

चुपके से तुने जब दिल को छुआ था

लगन वो ऐसी लगी थी

बिन कहे ह़र बात कह गयी थी

प्यार भरी वो मीठी खुमारी

ठंडी आहेँ छोड़ गयी थी

मासूम मन तब बहला था

चुपके से तुने जब दिल को छुआ था

मासूम मन तब बहला था

Monday, September 19, 2011

आधार

खाब्ब संजोये थे नयनों ने जो

शब्दों में वयां उन्हें कर पता नहीं

काश स्वरुप के उसको

कोई आकर मैं दे पाता

हकीक़त में जीने का

आधार उसे बना पाता

खाब्ब संजोये थे नयनों ने जो

पूरा उन्हें मैं कर पाता

आशाये

सूर्य नतमस्तक को

झुक गया हिमालय

उसकी आभा किरणों से

सज गए शिवालय

गूंज उठी अजान स्वर लहरी

प्रभात बेला फिर चली आयी

संग अपने नयी आशाये ले आयी

वाबरा मन

मन वाबरा ओ मन वाबरा

खोजे फिरे पिया का आंगना

मन वाबरा ओ मन वाबरा

पिया रंग मन ऐसा रंगा

अब पिया बिन जिया लागे ना

मन वाबरा ओ मन वाबरा

गाये गीत प्यार का

आजा ओ पिया ओ पिया

तुझ बिन अब जिया जाये ना

मन वाबरा ओ मन वाबरा

बचपन की याद

बचपन की वो याद

चल देते थे बाज़ार

पकड़ पिता का हाथ

तलाशती रह जाती माँ

लग जाती आँख मिचोली

भाई बहनों के साथ

ना कोई फिक्र थी

ना थी कोई चिंता

सपनों की तरह बीत गया बचपन

अब तो बस शेष रह गयी
यादें ही यादें


सवाल

जिन्दगी कई बार कई सवाल करती है

जबाब मगर ह़र बार अधूरे मिलते है

क्योंकि दिल सच्चाई को स्वीकार करता नहीं

ओर मष्तिष्क दिल की बात अनसुनी करता नहीं

Sunday, September 11, 2011

मौन आँखे

अक्सर दिल कुछ कहता है

गुमशुम मौन आँखे

चुपचाप सुनती है

आंसुओ में लिपटी आँखे

छलछला आने को तरसती है

डरती है मगर सोच के

भावनाओ के सैलाब में

कही जिन्दगी बह ना जाये

ओर दर्द के साये में

सहमी सहमी सी जिन्दगी गुजरती रहती है

Monday, September 5, 2011

बेताब

आज दिल तुमसे बातें करने को बेताब है

अफ़सोस मगर तू सितारों के पास है

ख्वाईस फिर अधूरी है

मगर यादें अब भी दिल के पास है

दूर हो तो क्या

इन आँखों को अब तलक बस तेरी ही चाह है

Saturday, September 3, 2011

शायद

तपस्या करते करते

आधी जिन्दगी गुजर गयी

मुराद पर पूरी ना हुई

कमी ना जाने कौन सी रह गयी

तम्मना कुछ ओर अब ना रही

तक़दीर शायद यही थी

सोच जिन्दगी मौन हो गयी

बौना

पहली ही मुलाक़ात में

खोल दिये सारे राज

मुमताज अपनी प्रेम कहानी के आगे

बौना दिखेगा ताज

पैगाम है प्यार के नाम

जमाने ने कब समझा

लैला मजनू का बलिदान

तुम जो करलो हमारा प्रस्ताव स्वीकार

तोहफे में ला देंगे तुम्हे पूरा चाँद

कुछ भी कहे अब दुनिया

सितारों के बीच होगा अपना मुकाम

सबसे जुदा , पर अनोखा होगा अपना प्यार

यादों के संग

तेरी यादों ने बुझे दीये फिर से जला दीये

उदासी में गुम दिल को फिर खिला दीये

बेकरार मैं आज भी संग तेरे जीने को

पर गुम हो गयी तुम कही

छोड़ हमें यादों के संग जीने को

इम्तिहान

धैर्य धर धीरज रख

इम्तिहान की ऐ घड़ी भी गुजर जायेगी

जीत ली जो संयम की बाज़ी

इस रात की सुबह फिर आएगी

बुलंद रख हौसले को

हार भी जीत में बदल जायेगी

अंतर्ध्यान

पल में सब कुछ भूल गया

आवारा पागल हो गया

हसरतें गुजरे कल की बात हो गयी

कलम जो साथ थी

वो भी साथ छोड़ गयी

अब तो याद ही ना रहा

शब्दों की प्रेरणा कब अंतर्ध्यान हो गयी