POEMS BY MANOJ KAYAL
अंतरमन की व्यथा कहने से डरता हु
गैरों के उपहास से
क्रोधाग्नि में जलने से डरता हु
हां मैं स्वीकार करता हु
मैं डरता हु
आत्मसमान की खातिर
आत्मग्लानी में जलने से डरता हु
जिन्दा रहने की लिए
मरने से डरता हु
हां मैं डरता हु
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