POEMS BY MANOJ KAYAL
ओजस्व वाणी बहे जिनके मुखारबिंद से
बन श्रृंगार रस की मुधर धारा
उनके ह्रदय कण कण विराजे
प्रेम अनुराग की धारा
स्वयं सरस्वती विराजे
इन मधुर कंठ की छाया
बहे फिर कैसे नहीं
मीठे रस से भरी
प्रेम रस की भाषा
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