POEMS BY MANOJ KAYAL
ज्ञानी नहीं हु
फिर भी लिखता हु गीत नया
जाने कब बह पड़े
मीठे संगीत की रस भरी धारा
सरगम लगेगी जब बरसने
नाम मेरा भी तब लगेगा छलकने
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