RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Wednesday, January 26, 2011
स्तब्ध
खामोश कदम चलते रहे
उलझाने अपनी गिनती रहे
वीरानगी में आहट टटोलते रहे
मौत का सन्नाटा
गुजर रहे ह़र लहमों
सिरहन बन दोड़ते रहे
स्तब्ध मौन गुमसुम साँसे
खामोश क़दमों से ताल मिलाते रहे
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