Friday, December 24, 2010

विष का प्याला

मीरा पी गयी विष का प्याला


रटते रटते कृष्ण नाम तुम्हारा


लाज रखी तुमने प्यार की


विष बन गया अमृत प्याला


जीत गयी मीरा की प्रेम गाथा


मीरा तो रटे बस नाम तुम्हारा

प्रीत रागिनी

सुन के तेरी प्रीत रागिनी

तेरे प्यार भरे ख्यालों में

खो गयी दुनिया सारी

छू गयी तेरी हँसी दिल को

बोल उठी खामोश जुबाँ भी

साया बन थामा जो हाथ

होने लगा प्यार का कमाल

मुर्दा दिल भी जाग उठा

कहने लगा

तू ही मेरे दिल की साज

तू ही मेरा प्यार

चकित

भरी सभा द्रोपदी का चिर हरण होने लगा जब

हाथ जोड़ याद किया कृष्ण को तब

साड़ी का आँचल इतना बड़ा दिया

थक हार गए कौरव सारे

मिला ना अंत छोर साड़ी का

देख कृष्ण तेरी माया

चकित रह गया जग सारा

कृष्ण-राधा

कृष्ण की बांसुरी ताल पे

ता था थैया नाचे राधा रानी

नंदनवन रास रचावे कृष्ण मुरारी

सखिया संग झूमे राधा रानी

संगम तट खेले कान्हा त्रिपुरारी

संग आँख मिचोली खेले राधा रानी

है जग में विख्यात इनकी प्रेम कहानी

बिन राधा अधुरा मुरारी

गुमान

गुमान नहीं अभिमान है

मेरे पिता पे मुझे नाज है

झुके नहीं टूटे नहीं

विपता जब भी आयी

शूरवीरों की तरह डटे रहे

साथ छोड़ चले गए अपने भी जब सभी

हिम्मत हारी नहीं तब भी कभी

आत्मविश्वास के बलबूते

पाली पुन: शोहरत सारी

धूमिल हो गयी थी जो

विपति काल में

आने वाला

ए दोस्त तू यू ही हमदम बना रह

मुस्कराते हुए चलता रह

आने वाला ह़र पल तेरा है

प्यार के संग इस जीता जा

सोहब्बत

सोहब्बत का असर है हमारी

रेगिस्तान में गुलाब खिला दिया

ओर बुझे बुझे दिल को

प्यार करना सीखा दिया

Tuesday, December 21, 2010

अंकित

उत्साह उमंग लाये

निर्झर मन में खुशियों की सौगात

नाचे मन , मारे हिलोरे दिल की लगी

वर्णित हो नहीं सकती शब्दों में

अंकित हो गयी दिल में जो घड़ी

जिन्दगी का साथ

कितना मुश्किल है जिन्दगी का साथ

कभी सोचा है मेरे यार

किस पल हँसा दे

किस पल रुला दे

कोई कह नहीं सकता मेरे यार

किस पल रुसवा हो

अलविदा कह दे जिन्दगी

कोई जान नहीं सका मेरे यार

जादू

जब जब तेरा जिक्र चले

चहरे पे मुस्कान जादुई बिखर जाये

आँखों की शरमों हया

पलके बंद कर

दिल ही दिल तेरी तस्वीर बनाये

मुख मंडल लगे दमकने ऐसे

चन्दा से चाँदनी छिटक रही हो जैसे

रब

जब रंग लहू का एक

फिर कैसा महजब का फैर

मंदिर हो या मस्जिद

सब में बसे एक ही रब का नाम

अल्लाह कहो या राम

सब के दिल में हो बस प्यार का ही नाम

प्यार में ही बसे अल्लाह और राम

साँसे

गए खफा हो तुम जबसे

साँसे रुकी हुई है तबसे

रुसवाई ने तेरी हमको रुला दिया

मोहब्बत क्या होती है

हमको बता दिया

अब ओर ना हमको रुलाओ यार

लौट आओ मेरे प्यार

मेरी साँसे कर रही है तेरा इन्तजार

सादगी

तेरे हुस्न की सादगी पे हो फ़िदा

चाँद ने चाँदनी की चुनर उढाई

सितारों ने जगमग करते तारों से मांग सजाई

मंत्र मुग्ध हो दर्पण भी शर्माए

ओ मेरे दिल की रानी

तेरी सादगी के कुदरत भी है हारी

Monday, December 13, 2010

बीते लहमे

जब भी मुस्कराना चाहा

जिन्दगी ने रुला दिया

जख्मों को फिर से ताजा बना दिया

सितम बीते लहमों ने ऐसा डाह दिया

आने वाला ह़र पल मनहूस बना दिया

जब भी मुस्कराना चाहा

जिन्दगी ने रुला दिया

सहेली

ओ सहेली तुम हो कैसी पहेली

सपनों में रोज आती हो

दिल पे दस्तक दे जाती हो

ज्यों ही पलक झपके

तुम फुर से उड़ जाती हो

अपनी जादुई मुस्कान से

दिल गुदगुदा जाती हो

सपनों की दुनिया में

प्यार भरी दुनिया बसा जाती हो

ओ सहेली तुम हो कैसी पहेली

Saturday, December 11, 2010

बात बनती

कुछ कहते तुम भी

तो कोई बात बनती

प्यार नहीं तो

रणभेरी गूंजती

प्यार और तकरार में

कोई तो बात बनती

मासूम कलि

ओस की शबनमी बूंदों में लिपटी

मासूम सी कलि

खिलखिलाए महकाए चमन

जब छुए सूरज की रौशनी

नयी राह

यादों ने तेरी फिर अलख जगा दी

पैगाम ने तेरे बुझते दिए को लो थमा दी

शमा ने जीने की

नयी राह दिखला दी

सर की कसम

जिया ऐसे फिर ना तड़पाना

हमें यू ना मार डालना

तेरे सर की कसम

तेरे लिए कुछ भी जायेंगे

सारी दुनिया से अकेले लड़ जायेंगे

दिल में

आँखों में शरारत

चहरे पे मुस्कान

कुदरत ने भर दी सारी कायनात

तेरे छोटे से प्यार भरे दिल में लाय

लय

संगीत की लय तुमने बिखरा दी

गीत बनने से पहले धुन चुरा ली

बिन संगीत

नगमे गुनगुनाये कैसे

तेरे दिल में अब घर बनाये कैसे

संगीत की लय तुमने बिखरा दी

अलख

सपने दिखा दिखा

नींदे आपने चुरा ली

अब सोये कैसे

प्यार की अलख आप ने जगा दी

गलती

उस राह कभी ना जाता

जो कभी मेरी मंजिल ना थी

पर ह़र कदम सपने टूटते गए

कदम निराशा के भंवर में

खुद ब खुद गर्त की ओर चलते गए

ना किसी से कभी कोई गिला रही

ना किसी से कभी शिकायत रही

अपने कदम रोक ना पाया

उसमे औरों की क्या गलती थी

बिडम्बना

ह़र पल टूटा हु

खुद से खुद को जोड़े

फिर भी खड़ा हु

है ए अजब बिडम्बना

गम भुलाने को रो भी ना पाऊ

जी रहा हु

पर जिन्दा कैसे रह पाऊ

कैसे

कैसे ए दर्द भरी दास्ताँ पेश करू

जख्म तुने जो दिए

कैसे उन्हें पेश करू

दर्द ए दिल कैसे पेश करू

तुझे भुलाने को

क्या में ओर करू

कैसे उस बीते लहमे को पेश करू

आपसे

नजरे मिला नजरे चुराना कोई आपसे सीखे

रोते दिलों को हसना कोई आप से सीखे

काँटो में रह के भी

गुलाब की तरह मुस्काना कोई आप से सीखे

Thursday, December 9, 2010

लगन

लागी तुझसे लगन

वो अनजाने सनम

खबर ना मिले जब कोई

घबराने लगे मन

मांगे रब से

तेरी सलामती की खबर

ओ अनजाने सनम

लागी तुझसे लगन

Tuesday, December 7, 2010

घनचक्कर

छुट गयी ह़र आदत

बदल गयी जिन्दगी

जब से मिली अनबुझ पहेली

सब गड़बड़ झाला हो गया

पहेली सुलझाने के चक्कर में

खुद घनचक्कर हो गया

मेरा साथ

छोड़ो ना तुम मेरा साथ

घबराए जिया

देख परछाई अपनी भी अकेले माये

रहे जो हाथ तेरे हाथ

दिखती है फिर आस

तेरे प्यार के सहारे

लग जायेगी जीवन नैया पार

में करता हु तुमको अंगीकार

तुम भी करलो मुझको स्वीकार

छोड़ के जाओ नहीं मेरा साथ

तेरे लिए

तेरी खुशियों की दुआ माँगा करेंगे

सजदे में उसके सर झुकाया करेंगे

तुम सलामत रहो सदा

परवरदिगार से बस ये ही माँगा करेंगे

बदनाम

कुछ रिश्ते बेनाम होते है

ऐसे रिश्ते अक्सर बदनाम होते है

इन रिश्तों को ओर कोई समझ सकता नहीं

इसलिए ऐसे रिश्तों को बदनाम करते है

ठिकाना

ना ठोर है ना ठिकाना है

जहा मिल जाये आसरा

वो बसेरा सपना है

ह़र रोज एक नया सबेरा है

छोटे से इस जीवन में

ना कोई अपना है

ना कोई पराया है

जिन्दगी बस ऐसे ही

चलते जाना है

Sunday, December 5, 2010

बदले बदले

बदले बदले से जनाब नज़र आये

रिश्ते नए क्या मिले

बदले बदले सुर नज़र आये

नए रिश्ते की सौगात में

पुराने दोस्त नज़र ही ना आये

रुख

रुख हवओं ने बदला

जिक्र तेरा जो चला

ठहर गयी राहें

जादू तेरा जो चला

खिल उठी कलियाँ

अहसास तेरा जो हुआ

छुप गया चाँद

नूर तेरा जो दिखा

जिक्र

कोशिश जितनी भी की भुलाने की

तुम उतनी ओर करीब आयी

चाहत जूनून बन गयी

नफरत शोला बन गयी

आरजू इतनी रही

तुम रहो जहाँ भी

सदा सलामत रहो

पर जिक्र

दिल से दूर जाने का ना करो

Saturday, December 4, 2010

जज्बात

जज्बातों के भंवर में उलझी जिन्दगी

सितम सह सह खत्म हो गयी जिन्दगी

अपनों की कटु वाणी ने घायल कर दी जिन्दगी

बेंधे ऐसे तीर

डूब गयी आंसुओं के बीच जिन्दगी

मुलाक़ात

गुम हो गयी पहचान

तलाश अभी जारी है

अजनबियों के बीच

खुद से एक मुलाक़ात अभी बाकी है

इन्तजार

सदी गुजर गयी तुमको देखे हुए

रौशनी थक गयी आस निहारते हुए

अक्स दिखा चाँद के दीदार में

बाहें खुली है तेरे इन्तजार में

सिसकियाँ

सुबक सुबक सिसकियाँ भरते रहे

हाले गुम भुलाते रहे

टूटे दिल को सहलाते रहे

जख्म फिर भी भर नहीं पाये

जिन्दा अब कैसे रहे

खुद को कैसे ए बतलाये

Wednesday, December 1, 2010

सर्दी

रिम झिम रिम झिम वर्षा आयी

मौसम ने ली अंगडाई

लो आ गयी सर्दी रानी

बड़ ने लगी ठिठुरन बेचारी

कंपकंपाने ने लगी देह सारी

शीतल ठंडी फुहारों ने

बदल दी रंगत सारी

दस्तक दे दी ठंडक ने

कह रही घटाए सारी

Sunday, November 28, 2010

तन्हाई

तन्हाई में घिरे

तन्हा अकेले बैठे रहे

मंथन विचारों का चलता रहा

खामोश लब गुमसुम से

दिल की धड़कने गिनते रहे

अकेलेपन की तन्हाई में

क्यों गुम हो गयी जिन्दगी

जबाब इसका तलाशते रहे

कॉल गर्ल

बिक रही औरत मंडी में आज भी

कोई हवस की खातिर

कोई पैसे की खातिर

बस स्वरुप इसका बदल गया

नाम नया इसको मिल गया

कोठी के जिन्ने , तवायफ की कहानी

बात ए सदियों पुरानी

अब चर्चे रोज नए होते है

जिस्मफरोशी के इन खिलाडियों को

कॉल गर्ल कहते है

कहानी

बज रहे है ढोल

मच रहा है शोर

चुपके से आया कोई चोर

चुरा ले गया शहजादी का नूर

हो रही मुनादी

जिसने की है ए गुस्ताखी

शहजादी करेगी उससे शादी

चोर ने नहले पे दहला मारा

आधी रात शहजादी की मांग भर आया

देख इस दुह्साहस को

शहजादी का दिल उसपे आया

उससे अपने सपनों का राजकुमार बनाया

प्रेरणा

तेरी प्रेरणा से

ह़र शब्द छंद बन गया

स्वर मीठे रस से भरे बोल बन गए

कदम स्वत: ही

मंजिल की ओर चल दिए

दुनिया देखती ही रह गयी

ओर हम कामयाबी के शिखर पहुँच गए

छूना

चन्दा छू लू सूरज छू लू

छू लू धरती आकाश

छू ले जो तू इस दिल को

ना फिर छूऊं किसी ओर को

किसी भी सूरते हाल

Friday, November 26, 2010

जिक्र

जिक्र तेरा जो चला

महफ़िल में रौनक आ गयी

खामोश लबों पे भी

तेरी ही बात छा गयी

एक तेरे ही जिक्र से

बेजान महफ़िल में भी जान आ गयी

तेरा पता

काश तेरा पता मिला होता

ख़त तेरे नाम लिखा होता

हाले दिल वयां किया होता

एक अजनबी से दिल लगाने का दर्द ए हाल लिखा होता

दिल के दर्द का अगर दर्द पता होता

खुदा कसम दिल ना लगाया होता

काश तेरा पता मिला होता

अमन

सरहदे दोस्ती को बाँध नहीं सकती

फासले कितने भी हो वतनों में

यारों के मिलन को रोक नहीं सकती

पैगाम है ये अमन का

दूरियां इसे मिटा नहीं सकती

सौदागर

खाब्बों का सौदागर हूँ

खाब्ब सजाता हूँ

सपनों की रंगीन दुनिया में

हसीन महफ़िल सजाता हूँ

ह़र दिलों के राज को

खाब्ब बना आँखों में सजाता हूँ

जिसके जिक्र से दिल खिल उठे

ह़र उस खाब्ब को हकीकत बनाता हूँ

खाब्बों का सौदागर हूँ

खाब्ब सजाता हूँ

Wednesday, November 24, 2010

पहचान

एक तुझ से ही पहचान है

बाकी सब गुमनाम है

नाज है अभिमान है

तुम पिता हम तेरी संतान है

ह़र जन्म जुड़ा रहे

एक दूजे से अपना नाम

छोटी सी रब से ये फ़रियाद है

बस एक तू ही पहचान है

ताबीर

कुछ खोया खोया से लगे

दिल अपना बेगाना सा लगे

चाहत की ये ताबीर है

एक नए रिश्ते की तामिल है

धड़क रहा जिया

फिर भी गुमसुम सी धड़कने सारी है

एक मीठी सी अहसास है

उमंगों की बारिस में दिल

प्यार के लिए बेकरार है

भश्मासुर

तू डर नहीं निडर बन

आगे बड़ मुकाबला कर

ललकार उन दरिंदो को

जो खले अस्मत से नारी की

पल में सारे मर जायेंगे

तेरी क्रोध अग्नि में सारे भश्मासुर

भस्म हो जायेंगे

सुन्दर जहाँ

आओ ऐसा सुन्दर जहाँ बनाये

ह़र घर फैले उजिआरा

ऐसे सूरज की ह़र किरणे सजाये

आभा बिखरे जिससे

शीतल सुप्रकाश की

ओर जगमगा उठे जग सारा

इन्तहा

जख्म तुने इतने दिए

इन्तहा सजा की हो गयी

अब तो दर्द भी दर्द ना रहा

इसकी तो आदत सी हो गयी

अब ना आंसू बचे

ना जीने की तमन्ना ही रही

जुल्म सहते सहते

जिन्दगी जिन्दा लाश हो गयी

Monday, November 1, 2010

नतमस्तक

समर्पण करूँ , अर्पण करूँ , तर्पण करूँ

हे रब तेरे आगे सर नतमस्तक करूँ

कुछ भी कहे दुनिया

सबसे पहले मात पिता की पूजा करूँ

अंश हूँ उनका

आज्ञा उनकी शिरोधार्य करूँ

बिमुख तुमसे हूँ नहीं

अहंकारी मुझको समझना नहीं

उनके रूप में ही तेरे दर्श पाऊ

समर्पण करूँ , अर्पण करूँ , तर्पण करूँ

हे रब तेरे आगे सर नतमस्तक करूँ

रौशनी

दीपों की रौशनी

पटाखों का शोर

घोल रही रिश्तों में

चीनी का घोल

ले आयी दिवाली फिर

मस्ती भरी उमंग

जगमग हुआ जहां

रोशन हुए दिल

रंग बी रंगी आतिशबाजी से

अम्बर हुआ रंगीन

मिलन की आस

सितम तेरे सारे सहते रहे

तेरी सलामती की दुआ फिर भी माँगते रहे

अश्को ने भी छोड़ दिया साथ

पर गुजरे लहमे याद कर मुस्कराते रहे

खत्म हो गयी जिंदगानी जलते जलते

पर साँसे बची है अब तलक

तेरे मिलन की आस लिए

तू ही तू

तुम इस दिल की कविता बन गयी

रग रग में यूँ समां गयी

जुबा जब भी खुली

ह़र लफ्ज में तू ही तू नज़र आयी

इस कदर तेरी दीवानगी छाई

ह़र फूल में तू ही तू नज़र आयी

जन्म जन्म

तेरी याद में

साँसे अगर छोड़ दे साथ

गुजारिश है हमारी छोटी सी फ़रियाद

कब्र पे हमारी जब भी आना

फूल जरुर साथ लाना

इंतकाल का बाद

कब्र अपनी हमारे पास बनवाना

वादा जन्म जन्म साथ निभाने का

मौत के बाद भी निभा जाना

कहानी

ह़र शबनम की अपनी जिंदगानी है

कलि से फूल बनने की कहानी है

छोटी ही सही

अफ्सानो से भरी ह़र जवानी है

प्यार

आ तुझे इतना प्यार में करू

साँसे अपनी तेरे नाम करू

दरमियाँ रहे ना कोई फासले

बाहों में तुझको छुपालू

आँखों में कैद कर

दिल में तुझे बसा लू

आ तुझे इतना प्यार में करू

Tuesday, October 12, 2010

सच्चे ख्वाब

तम्मनाये दिल में अठखेलिया करती है

ख्वाब सच होने के सपने संजोते है

सपने सच हो या ना हो

दिल में उमीद की किरण दिव्यमान करती है

बुलंद हौसलों की चमक

आँखे वयां करती है

शेरावाली

ओ माँ शेरावाली ओ माये

लेके खाली झोली आये तेरे द्वारे

भर दिए अन्न धन के भंडारे

मुझ निर्धन की कुटिया में आये

ओ माँ शेरावाली ओ माये

जब बबी पुकारे भक्त तुझको

तू दौड़ी चली आये

राख दे हाथ तू जो सर पे

सारी चिंता पल में दूर हो जाये

ओ माँ शेरावाली ओ माये

जो जन ध्यान धरे तेरा

संकट उनको छूने ना पाये

ओ माँ शेरावाली ओ माये

तेरी महिमा गाये सारे नर और नारी

माता तेरी ममता बड़ी दुलारी

ओ माँ शेरावाली ओ माये

Friday, October 8, 2010

तक़दीर

किस्मत खुदा ने लिख दी

तक़दीर हमने खुद बना ली

ह़र हार में भी जीत की खुशबू महका दी

कुदरत देखती रह गयी

ओर काँटों की राहों को

फूलों की सेज बना दी

हमने अपनी तक़दीर खुद बना ली

मीठी यादें

भीगीं भीगीं सी तेरी यादें

महकी महकी सी तेरी साँसे

भीनी भीनी सी दिल की फिजाए

ओ यारा

होले होले जले मन सारा

तडपे जिया

खोजे तेरी बाहों का सहारा

ओ यारा

तेरी यादों की भीनी भीनी खुशबू से

छाये मस्ती चुपके चुपके

चढ़े रंग प्यार का होले होले

ओ यारा भीनी भीनी मीठी मीठी यादें

Sunday, October 3, 2010

आँखों ही आँखों

बेजुबा होती है दिल की जुबा

आँखे बया करती है दिल का हाल

रोग है ऐसा

धड़कने देतीहै सिर्फ साथ

बिन कुछ कहे

तभी हो जाता है

आँखों ही आँखों में प्यार

ख्वाब

तारों भरी रात

चन्दा का साथ

संजोये ख्वाब

काश हम भी होते

सितारों में आज

खेल रहे होते

लुका छिपी चाँद के साथ

Saturday, October 2, 2010

रचना

सुन्दर है वो रचना

फ्रस्फुटीत हो जिसमे जीवन की प्रेरणा

सपन्दन जिसके रचे

नई अंकुरों की सफलता

शब्दों में जिसके छिपी हो

मिठास भरी मृदुता

निहित हो जिसमे

प्रकृति की समीपता

सुन्दर होती है वो रचना

राजनीति

आधार जिसका हो जनाधार

मुक्त कंठो की प्रशंशा का वह है पात्र

बड़ा ही चतुर वह सुजान हो

जिसके हाथों में अवाम की लगाम हो

महारत पाली जिसने इस खेल में

समझो

बादशाहत उसकी जम गयी राजनीति के खेल में

मस्तिष्क

यादों से जिसकी शुरू हो दिन की शुरुआत

वो है यही दिल के आस पास

तभी नज़र आती है

मन मस्तिष्क को

अनजानी आकृति में भी

उनकी ही पहचान

अब तलक तरो ताजा है

उनकी परछाई की भी याद

द्वन्द

उलझ गयी जिन्दगी

मंदिर मस्जिद के द्वन्द में

कोई कहे मंदिर बने

कोई कहे मस्जिद बने

पर ये भूल गए सभी

लिखी हो जिसकी इबारत

बेगुनाहों के खून से

कबूल नहीं होगी

रब को वो इबादत भी कभी

फिर क्यों करे द्वन्द

निकल मंदिर मस्जिद की होड़ से

लिखे एक नई इबारत

क्यों ना फिर भाई चारे के स्नेह की

लेखनी

लिखू कैसे शब्द गुम हो गए सारे जैसे

देखा लेखनी को जो नज़र भर

लगा कह रही हो

छोड़ा ना साथ मेरा

ओ मेरे हमसफ़र

थामे रहो तुम मेरी कलाई बस

लिखती चली जाऊँगी उम्र भर

देखना तुम

बरसने लगेंगे जब रंग

याद आने लगेंगे पुनः शब्द तब

Thursday, September 23, 2010

जुझारूपन

जूझ रहा हु ऐसे

ह़र कदम चलना सीख रहा हु जैसे

गिरते उठते आगे बढ़ रहा हु ऐसे

खुद के क़दमों पे खड़ा होना सीख रहा हु जैसे

मंजिल अभी भी बहुत दूर वैसे

पर लग रहा है ऐसे

कामयाबी कदम चूम रही हो जैसे

Wednesday, September 22, 2010

छाया

बातों में तेरी लहराती है गीतों की माला

सुनके नाचे मन की अभिलाषा

इतनी हसीन है तेरी आँखों की मधुशाला

देखू जब भी इनमें

सुध बुध भूल जाती है दिल की भाषा

ओ सुन्दरी कैसी है ये तेरी माया

मेरी परछाई में भी दिखे तेरी ही छाया

Thursday, September 16, 2010

तू ही तू

जुस्तजू तेरी ऐसी लगी

आँखों में तेरी ही तस्वीर बसी

देखू जिधर भी

बस तू ही तू दिखी

मेरे पूज्य पिता

जीवन सदैव ऋणी रहेगा आपका

पितृ स्नेह लुटाया ऐसा आपने

भर गयी झोली हमारी आपके प्यार से

पर बिन कहे ऐसे गये

खामोश हो गयी आवाज़ भी आपकी

तलाश रही है नजरे

आप की छावँ आज भी

छलछला आती है आँखे

जब भी आती है याद आपकी

बस एक बार वापस चले आओ

चाचा जिन्दगी को तलाश आज भी आपकी

Monday, September 13, 2010

भाषा

शब्दों का है मायाजाल

तोड़ मरोड़ करो ना इसको बदनाम

रचो सुन्दर शब्दों का जाल

मिला अक्षरों से अक्षरों का साथ

मिलेंगे नए नए शब्द हजार

पर याद रहेगी

सिर्फ मीठी भाषा ही मेरे यार

इसलिए करो सुन्दर भाषा का इस्तेमाल

गुमशुम

गुमशुम है परेशान है

दिल आज चुपचाप है

बात कुछ ख़ास है

दिल के बोल बंद आज है

मौन है मन उदास है

कहीं खो गया दिल आज है

विरह है या प्यार है

दिल का बुरा हाल है

ना जाने किसके लिए

दिल आज बेकरार है

Friday, September 10, 2010

नियति

अहसास है जिन्दगी

कुदरत की बख्शी हुई है नियति

जियो ह़र पल खुशियों के साथ

ह़र लहमा बन जाये यादगार

कुदरत भी कह उठे

तू है सच्चा दिलदार

जी तुने साँसे खुशियों के साथ

खुशबू से तेरी चमन में छा गयी बहार

ह़र कोई करेगा तुझको याद

जी जिन्दगी तुमने खुलकर यार

बेचारा

रूप सलोना मन मोहना

मटकाए जब नयना

मन फिरने लगे हो बाबरा

पतली कमर सुन्दर सी लचक

ठुमक ठुमक चले जब

मन डोले हो बाबरा

कंचन सी काया

हिरनी सी चाल

घायल हो गया दिल बाबरा

कभी

मिले एक सदी बाद

फिर से बिछड़ जाने को

तड़पता रहा मन

जलती रही अगन

बदली नहीं नियति खास

पर खेल रचा ऐसा खास

फिर कभी हो सका ना उनका साथ

ओझल

पंचतत्व से बना शरीर

पंचतत्व में मिल जायेगा

कर्म हो अच्छे तो

यादें सिर्फ रह जायेगी

वर्ना स्मृतिपटल से वो भी

ओझल हो जायेगी

पर्व

एक ही रब के बन्दे हम सभी

आओ मनाये ह़र पर्व खुशियों के साथ

हो शरीक ईद में भी

लगाए इसमें चार चाँद

Sunday, September 5, 2010

माँ की ममता

ओ माँ तेरी ममता बड़ी दुलारी

इस जग में नहीं कोई तेरा सानी

रोम रोम तेरी भरी दया

तुझे से बड़ा ना कोई बलिदानी

कर्ज तेरा चुका सके ना कोई

माँ तुझ सी नहीं इस धरा पर कोई

तेरे ही चरणों में जन्नत की खुशियाँ

तेरे नाम में ही समाई सृष्टि सारी

माँ तेरा नहीं कोई सानी

माँ तेरी ममता बड़ी दुलारी

सजा

हुक्म सुनाया दिल ने

सुन उनकी प्यारी फ़रियाद

चुरा लिया नूर तुमने इन आँखों का

कैसे कर दू तुम्हे माफ़

खता नहीं

किया है तुमने संगीन अपराध

सजा भुगतनी होगी तुमको इसकी

गुजारनी होगी ता उम्र कैद हो बाहों में मेरी

माँ

माँ तुम कीर्ति हो कुदरत की बेमिसाल

सर झुके तेरे ही चरणों में बारम बार

सृष्टि रचे तेरे ही पुण्य प्रताप

रब से भी पहले तुझे ही पुकारे

सारे जन अपार

हा माँ तुम ही वो महान अवतार

जिसके आगे शीश नवाये

ईश्वर भी खुद आय

सच्चाई

पढ़ हमारी रचना

कहा एक मित्र ने

क्यों लिखते हो दर्द ए दास्तान

लिखो कुछ ऐसा

पढ़ जिसे आ जाये जोश फुर्तीला

कहा हमने

मित्र नहीं ए हमारे बस में

लिखू सिर्फ दिल बहलाने के वास्ते

मुँह मोड़ नहीं सकता मैं

निष्ठुर सच्चाई के आगे

Friday, September 3, 2010

अभिशाप

जन्म लेना है वरदान

जिन्दा रहना है अभिशाप

नरक से बदतर है जिन्दगी

कीमत जिन्दा रहने की ऐसी

जो मरकर भी छोड़े ना साथ

घुट घुट रेंगती है जिन्दगी

बिन पानी जैसे मछली

तड़पती है जिन्दगी

ह़र पल कहीं ना कहीं

बिकती है जिन्दगी

जिन्दा रहने के लिए

क्या कुछ नहीं कराती है जिन्दगी

खुद से हार , बन गयी अभिशाप

ओर देह बन गयी एक जिन्दा लाश

अजनबी

अजनबी शहर अजनबी लोग

ढूंड रही नज़र तलाश रही छोर

मन हो उदास भटक रहा

कभी इस गली

कभी उस मौहले की ओर

बेबस आँखे घुर रही गुजरे पल की ओर

अब तो याद भी नहीं

जाना है किस ओर

अजनबी शहर अजनबी लोग

रुसवा

यूँ लगे , जिन्दगी हमसे रुसवा हो गयी

चहरे पे उदासी की लकीरें उभर गयी

अनजानों के बीच

जिन्दगी कैद हो रह गयी

लाख जतन की

पर वो खुशी फिर मिल ना सकी

Friday, August 27, 2010

सदमा

दर्द तुने इतना दिया

लहू आंसू बन आँखों से बह चला

दिल चूर चूर हो बिखर गया

सदमा ऐसा लगा

शक्ल खुद की भी याद ना रही

जब देखा आइना

अजनबी शक्ल नज़र आयी

खता दिल लगाने की हमसे हो गयी

जिन्दगी हमसे रुसवा हो गयी

दर्द तुने ऐसा दिया

जोड़

बड़ा ही मज़बूत है ये जोड़

तोड़ नहीं इसका कोई मेरे दोस्त

ये है सच्चे बंधन की डोर

काट नहीं इसका कोय

कहते है इसे दिल से दिल का जोड़

मेरी तेरी यारी का जोड़

प्रकाश

दुओं की रोशनी से आपकी राहे

जगमगाती रहे

अँधेरे में भी सूरज की तरह

प्रकाश की किरणे

बिखराती रहे

आप यू ही सदा मुस्कराती रहे

खुशबू

कह रहा है मन

हो तुम यही कही

घुल रही तेरी साँसों की खुशबू

इन हवाओं में यही

महका रही ह़र कलि इन फिजाओं में यही

बिखर रहा संगीत

तेरी पायल की छम छम से

करलो कितना भी जतन

छिपा ना खुद को पाओगे

दूर हम से रह ना पाओगे

भस्म

जल गया तन

भस्म हो गया मन

बची सिर्फ धड़कने

मुझको बस तू इतना बता दे

कैसे उससे तुझको जुदा करू

जिन्दा रहने के लिए अब क्या क्या ओर करू

मुक़दर

मुक़दर ऐसा मिला

ह़र फ़साने में एक अफसाना हमारा भी बना

ह़र खुबसूरत कलि से दिल लगाने के

फ़साना बनाना हमने भी सीखा

Monday, August 23, 2010

हिलोरें

जब भी देखू तुझे

दिल मेरा लगे मचलने

कांपने लगे साँसे

दिल मारे हिलोरें

बढ़ने लगे मिलन की बेताबी

सोच सोच तेरे लिए

बड़ने लगे बेकरारी

देखू जब भी तुझे

खुद पे रहे ना कोई काबू

ऐसा लगने लगे मुझको

धड़कन भी अब रही नहीं मेरे बस में

टूटा दिल

दिल जो टूटा

ताश के पत्तों की तरह

सपनों के आशियाँ बिखर गए

घरोंदे प्यार के

बसने से पहले ही उजड़ गए

साधारण

कहानी है ये सच्ची

रंक से राजा बनने की

फर्श से अर्श पे पहुँचने की

किया नहीं उसने कभी किसीको निराश

खुले हाथ किया दान

की मेहनत बहुत

ह़र दौर देखा जिन्दगी का

ओर रखा खुद पे विश्वास

ईश्वर ने भी सुनी प्रार्थना

साधारण से इन्सां को

पल में बना दिया महान

गुलजार

गुलजार रहे तेरा दामन सदा

है रब से यही दुआ

पग पग खुशियाँ मिलती रहे

रहे सलामत सदा तेरा जहाँ

खिलखिलाती मुस्कराती रहो तुम सदा

मेरी तो रब से बस यही है दुआ

हसीन रात

कितनी प्यारी थी वो छोटी सी मुलाक़ात

चाँदनी रात में नहाई हुई थी रात

झील मिल करते सितारों के साथ

बैठे थे हम तुम डाले हाथों में हाथ

एक दूजे को निहारते हुए

गुजर गयी वो खुबसूरत रात

आज भी जब ढलती है चाँदनी रात

याद आ जाती है

गुजरी हुई वो हसीन रात

Wednesday, August 18, 2010

WALK IN THE रैन

WALK IN THE RAIN

FEEL THE CHARM OF EVERY DROP

HEART WILL START BLOOMING LIKE A ROSE

IT’S ADVENTROUS, ROMANTIC, ENTHRALLING

IN SHORT IT’S FULL OF FUN

SO ENJOY IT & FORGET EVERYTHING

अजान

सुबह की अजान पे

खुली जब आँख

आया तेरा ही ख्याल

रहे सलामत मेरा प्यार

खुदा मेरे मेरी ये दुआ

तुम कुबूल फरमाना

मेरे महबूब को

मेरे दिल के पास ही रखना

हमारा दिल

एक तो हलकी बूंदों की छम छम

उसपे भीगे लब तेरे

देख इस शबनमी काया को

घायल कैसे ना दिल हमारा हो

अल्फाज

बड़ी नफासत से दिल के कोरे कागज़ पर

कुछ अल्फाज आप के सजदे में लिखे

संग दिल सनम ने पैगाम का जबाब लिखा

लिखावट है आप की

पर अल्फाज किसी ओर के

इसलिए आपसे फिर प्यार कैसे हो

दूर

हो जब हाथों में हाथ किसीका

मंजिल फिर कैसे दूर हो

हो जो वो सबसे अजीज

तो फिर कैसे वो दिल से दूर हो

रोना

जब कभी मन हुआ रोने को

बारिस में निकल पड़ा

वर्षा की बूंदों में आंसू घुल गए

किसीको ख़बर भी ना हुई

हम रो के घर अपने चले गए

खुशनसीब

मंजिल नहीं अब कोई

जिन्दगी सिमट गई बाहों में तेरी

मिल गया जो प्यार तेरा

यूँ लगा मिल गया सारा जहाँ

दिया तुने इतना यार

लुटा दिया सारा प्यार

काबिल मैं ना था

पर बना दिया तुमने

सबसे खुशनसीब इंसान

Friday, August 13, 2010

अंतर्ध्यान

शब्द जो आये अभी ध्यान

दूसरे पल ही हो जाये अंतर्ध्यान

कर लिया अगर कलम बंद

तो रह जाये याद

वरना फिर तो मुश्किल

करना उसे पुन्ह याद

ह़र पल बदलते भावों में

संभव नहीं मिले उसी का ध्यान

शब्द जो हो गया अंतर्ध्यान

अजब

लड्क्पन से जवानी तक मचलता रहा दिल

पर मिला ना ऐसा कोई

संग जिसके मिले खुशियाँ ढेर सारी

कितनी अजब ये कहानी

जिसमे कभी ना जिन्दगी झांकी

साँसे

तन्हा तन्हा रातें बदलती साँसे

महफूज प्यार की किरणों से

उम्मीद की साँसे

ख़त्म तन्हाई की वो रातें

मिले साँसों से साँसे

एक पल

सोचा था मिलेगे कभी तो

बिछड़े दो दिल कहीं तो

पर हुआ ना ऐसा अभी तक

लटक गयी जिन्दगी कब्र पर

बची है जो साँसे अभी तक

खुदा करे आके मिलो तुम एक पल

हसरतें इन चन्द घड़ियों में हो जाये पूरी

मिल जाये एक नयी जिन्दगी हमें भी

साथ साथ

संग संग , मेरा तेरा संग

सदा बना रहे , तेरा मेरा संग

संग संग बीता बचपन

संग संग चली दोस्ती हमारी

संग संग बीते अब जीवन

कहना है यही मेरे यार

डाले हाथों में हाथ

संग तेरा मेरा बना रहे

ह़र जन्म साथ साथ

Friday, August 6, 2010

आजादी


आओ जश्न मनाये आजादी का प्यार से

फहराए तिरंगा नाज से

राष्ट्रीय गीत गुनगुनाये शान से

वन्दे मातरम् के घोष से

फैलाए शान्ति का सन्देश स्वाभिमान से

जय हिंद जय भारत

Wednesday, August 4, 2010

भूले बिसरे

गुजरे पल याद आ गए

भूले बिसरे दोस्त याद आ गए

झाँका जो अतीत में

सारे बीते लहमे याद आ गए

फकीर

फकीर हूँ मैं तो

पूछो ना कोई मुझसे मेरी जात

हिन्दू भी मैं हु

मुसल्मा भी मैं हु

कोई भेद नहीं मजहब का दिल में मेरे

ह़र धर्म में दिखे मुझे , अल्लाह कहो या राम

मेरे लिए ह़र धर्म एक समान

सौगात

सौगात उनके प्यार की मिली

चाहते हिलोरे मारने लगी

धक धक कर दिल कहने लगा

मेहरबा खुदा हम पे हुई

नजरे उनसे चार हुई

बदले में वे दिल अपना हमें दे गयी

Monday, July 26, 2010

मेरे बच्चे

फक्र है नाज है

नहीं है अहंकार

मेरे बच्चे है

मेरे सर के ताज

मगरूर नहीं खुश हूँ

कुदरत ने दिए

दो छोटे से फूल मुझे उपहार

दिखे बचपन इन में मेरा अपना

पढ़ा लिखा बनाना है इनको अच्छा इंसान

गरूर है ये मेरा

मैं हूँ इनका जन्मदातार

आसरा

इस उम्र अब नए शहर क्या पहचान मिलेगी

काटे नहीं जिन्दगी कटेगी

आसरा है बस एक

यादों के सहारे

तारे गिन गिन राते कटेगी

दौर यह अकेलेपन का भी गुजर जायेगा

अंत समय कुदरत जब गले लगा लेगी

वर्षा रानी

छम छम बरसा पानी

फिर आयी वर्षा रानी

छाई सावन की हरयाली

उमड़ आयी मौजो की मस्ती

निकल आये सागर से मोती

कूके पपहिया नाचे मोर

छाई ऐसी घटा निराली

छम छमा छम बरसे पानी

फिर आयी वर्षा रानी

Sunday, July 25, 2010

दूर

संभल पाती सहज पाती जिन्दगी

दबे पावँ ख़ामोशी से

चली आयी एक खबर

आहिस्ते से दी दिल पे दस्तक

मुसाफिर तेरी मंजिल है अभी दूर

मत बुन सपने आशियाँ के यहाँ

जाना है तुझको बहुत दूर

जाना है बहुत दूर

नया बसेरा

अलविदा कह चल पड़े

एक नयी जगह

एक नया आशियाँ बसाने

परिंदे उड़ चले

बसेरा था सुन्दर वही

गुजरा था बचपन जहा कभी

पर नियति ने लिखा था कुछ ओर

तोड़ पिंजरा उड़ गए परिंदे

नए बसेरे की ओर

शहर

था शहर छोटा सा

थी एक छोटी सी पहचान

बसे जो बड़े शहर को जाके

घिर गयी अजनबियों की बाड़

मिली नहीं वो छोटे शहर सी बात

गुम हो गयी खुद की भी पहचान

रहा नहीं वो अब वो मुकाम

छोटे शहर में जो थी ख़ास

था शहर छोटा सा

छोटी सी थी पहचान

उजाला

सूर्य तपे कहे

मैं हु वो दीपक

जिससे फैले जग में उजाला

मेरी किरणों से उज्जवल बने सबेरा

मेरे सुप्रकाश से मिले

ह़र दिन एक नया सबेरा

खुद जलु खुद तपू

पर रोशन करू जहान को

ताकि ना फैले अंधियारा

Friday, July 23, 2010

अकेली

इतनी अकेली क्यों है जिन्दगी

है किसका इन्तजार जिन्दगी

खोई खोई है राहे

सहमी सहमी है साँसे

है कैसा ये सूनापन

है कैसी ये विरानगी

क्यों इतनी अकेली है जिन्दगी

है किसीका इन्तजार जिन्दगी

उलझन

उलझन में उलझ गई उलझन

ऐसी उलझी उलझन

सुलझन से भी सुलझ ना पायी उलझन

इस उलझन और सुलझन से आ गए चक्कर

खा खा के चक्कर

बन गए घनचक्कर

पर सुलझ ना पायी उलझन

उफ़ कितनी विकराल थी उलझन

जितनी सुलझाओ उतनी उलझ जाती उलझन

खाली किताब

खाली है दिल की किताब

सीखा दो प्यार का पाठ

लहू को स्याही बना

हर पन्नो पे लिख देंगे

आप का ही नाम

अधूरी रहे नहीं दिल की किताब

आप के साथ की हमको है दरकार

आप जो पढ़ाओगे पाठ

सबक वो जीवन भर रहेगा याद

तरस करो इस अनपढ़ पर आप

फ़ौरन चली आओ पढ़ाने प्यार का पाठ

थामे खाली किताब

कर रहे है आप का ही इन्तजार

कागज़ की नाव

छोटी सी कागज़ की नाव

पानी की लहरों पे अटखेलिया कर

मन को लुभा रही नाव

बहते बहते गिल्ली हो

पानी में समा गई नाव

हर्षित मन डूब गया

देख प्यारी नाव का ये हाल

छोटी सी कागज़ की नाव

Monday, July 19, 2010

थोडा सा प्यार

थोडा सा प्यार हो तो

ढेर सारी जीवन में मिठास हो

छोटी छोटी तकरारों में

प्यार की खुशबू का अहसास हो

अगर ऐसा हो जाये तो

ना कभी कोई तकरार हो

जीवन बन जाये स्वर्ग

इससे हसीन ओर क्या खाब्ब हो

रुसवा

जज्बातों का सागर उमड़ पड़ा

नयनों से सावन छलक पड़ा

रुसवा उन्होंने जो हमको किया

तन्हा हमें छोड़ दिया

खत्म मानो जिन्दगी हो गयी

जिनसे की मोहब्बत

बेवफाई से उनकी दिल टूट गया

जज्बातों का सागर उमड़ पड़ा

नयनों से सावन छलक पड़ा

रूह

जिस्म से रूह तक काँप उठी

उनकी जो कोई खबर ना आयी

दुआ खुदा से करते रहे

मन्नते सारी सारी रात मांगते रहे

वो हो सलामत

खबर बस ये हमको मिल जाये

चैन दिल को आ जाये

सकून रूह को मिल जाये

पूजा उन्हें खुदा से ज्यादा

समर्पण कर दिया

उनके नाम जीवन ये सारा

आराधना में उनकी

लुटा दिया प्रेम रस सारा

खबर उनकी ना आये जब कोई

काँप जाती है जिस्म से रूह तक सारी

Sunday, July 18, 2010

बिडम्बना

परेशान नहीं हैरान हु

देख इन रीती नियमों को

अन्धविश्वास में जकड़ी जिन्दगी

गुलाम बन गई सामाजिक कुरित्यों की

जंजीरे कब टूटेगी

दासता से मुक्ति कब मिलेगी

पर बिडम्बना है यही

आज भी मानव है इसी का आदि

देख इस दुर्दशा को

परेशान नहीं हैरान हु में

शून्य

टकटकी लगाए आसमां निहारता रहा

शून्य चेतना में विचरता रहा

अपनी जिन्दगी के ह़र पल को तलाशता रहा

कुदरत ने जिन्दगी के पन्ने कुछ ऐसे लिखे

खाली पन्नो के सिवा कुछ ओर नज़र नहीं आये

जिन्दगी अन्धकार में डूबी नज़र आये

चाँद का शरमाना

देखा है हमने चाँद को शरमाते हुए

खुद को बादलों में छुपाते हुए

नज़र ना लग जाये किसीकी

काला टिका लगाए हुए

देखा है हमने चाँद को मुस्कराते हुए

सितारों के संग खिलखिलाते हुए

छिप छिप चाँदनी बिखराते हुए

देखा है हमने चाँद को शरमाते हुए

खुली बाहें

बंद है राहे

खुली है बाहें

दामन यू छुड़ा ना पाओगे

दूर हमसे जा ना पाओगे

मंजिल है हम आपकी

हमसे नजरे चुरा ना पाओगे

लौट के आना है जब यही

क्यों ना फिर बाहों में चले आओ

Sunday, July 4, 2010

हसीन दुनिया

ख्याल हसीन है

दुनिया तभी रंगीन है

खेल रहा मन सितारों के साथ

पर कह न रहा दिल की बात

सिर्फ एक चाँद की खातिर

कैसे रुस्बा कर दूँ इतने सितारों को

जिन्दगी इन्ही से तो रंगीन है

तभी तो दुनिया हसीन है

हसरतें

हसरतें है बड़ी

मंजिले हो दूर ही सही

ख्वाहिसे होगी ना कम

डगर हो चाहे काँटो से भरी

अरमानों की आरजू है यही

जिन्दगी भी छोटी पड़ जाये

करते फरमाईसे पूरी

फिर भी इस छोटे से दिल की

हसरतें है बड़ी

Saturday, July 3, 2010

पतंग

पतंग का खेल हो गया खत्म

ऊँची उड़ रही थी पतंग

फंसा दी किसी ने उसमे अपनी पतंग

नाजुक हाथों में पकड़ चरखी

सुन्दर बाला उड़ा रही थी पतंग

पेंच उसने ऐसा लगाया

दिल हमारा उस पे आया

हम निहारते रह गए उसको

वो काट ले गयी हमारी पतंग

साथ ही कट गयी दिल की पतंग

पतंग का खेल हो गया खत्म

जगह

काश ऐसी कोई जगह होती

नजरे कोई घुर नहीं रही होती

उस पल को साथ अपना होता

पर मिलते कैसे

चाँद या तारे कोई तू घुर रहे होते

बीते लहमे

यादों को कैद करने का अनुभव सुखद होता है

बीते लहमो से रूबरू होना रोमांचित करता है

इन्ही लहमो में कुछ पल ख़ास बन जाते है

जिन्दगी के ह़र मोड़ पे जो बार बार याद आते है

Wednesday, June 30, 2010

चटोरी

मुन्ना भर लाया खीर की कटोरी

देखे चन्दा सुने माँ से लोरी

चुपके से जीजी चट कर गयी कटोरी

रो रो के पूछे मुन्ना

किसने खाली खीर की कटोरी

कहे जीजी चन्दा है चटोरी

चुपके से खा गया खीर भरी कटोरी

मुन्ना कहे जीजी

तू है सबसे बड़ी चटोरी

खायी चन्दा ने जो खीर

तो फिर तू क्यों चट रही कटोरी

रो रो मुन्ना कहे जीजी

पकड़ी गयी तेरी चोरी

माँ कहे चुप हो जा मुन्ना

तू है चाँद जीजी तेरी चटोरी

गलियों में

छुट गया बचपन गलियों में कहीं

रफ़्तार में खो गयी जिन्दगी कहीं

धूमिल पड़ गयी यादें

मानस पटल पर कहीं

फुर्सत मिली नहीं

समेट सकू यादें कहीं

छुट गया बचपन गलियों में कहीं

कुछ पल की

दोस्ती कुछ पल की थी

जिन्दगी उसी पल में थी

कशीश बड़ी प्यारी थी

एक दूजे के लिए

चाहत बड़ी निराली थी

पर बात भड़ी ना थी

चाहत जाहिर हो ना सकी थी

ओर दोस्ती रिश्ते में बदल ना सकी थी

उस पल

तुम गुजरी जिस राह से

सज गयी फूलों की सेज उस राह पे

कदमो की ताल पे झांझर बजने लगी जब

खिलने लगी कलियाँ फूल बन कर तब

देख तेरी नजाकत और मासूमियत

सिमट गयी कुदरत भी शर्मा कर उस पल

खुशी का राज

ह़र दुखों में छुपा है खुशी का राज

कह रही है जिन्दगी

मत हो तू उदास

रात ये ढल जायेगी

सूरज की किरणें नया सबेरा लाएगी

खुशियों से आँखे छलछला आएगी

Saturday, June 26, 2010

बेईमान

मिला जो दौलत का भंडार

खुदगर्ज बन गया इंसान

कल तक जिसने दिया साथ

उसे ही कह दिया

तुम हो सबसे बड़े बेईमान

साजन बिन

ओ पवन सुन जा

दर्द दिल का ले जा

संदेशा उनको ये दे आ

साजन बिन आँगन सुना

काटे कटे ना रतिया

करवटे बदल बदल

करे तारों से बतियां

कब आयेगे मेरे सजना

दिल तो अब माने नहीं

धड़के ना मोरा जिया

रस्ता उनका निहार निहार

सूनी हो गयी अंखिया

ओ री पवन

दे या उनको ये संदेशा

हो सके तो

ले आ उड़ा के उनको अपने संग

ओ पवन ओ ओ री पवन

तारीफ़

तारीफ़ में जिनकी कसीदे पढ़

ता उम्र गुजार दी

पर वो मेहरबान ना हुए

जिनके इन्तजार में जिन्दगी गुजार दी

जन्म दिवस

सुबह जब आँख खुले

सूर्य की किरणे नया पैगाम लेकर आये

प्रभात बेला कहे ढेर सारी खुशियाँ आप को मिले

दामन आप का सदा भरा रहे

जन्म दिवस के इस अवसर पर

दुआ हमारी ये आप स्वीकार करे

Friday, June 25, 2010

रक्त

कतरा कतरा रक्त कहे

ह़र बूंद में जीवन बसे

है ह़र बूंद अनमोल बड़ी

दान से इसके कईयों के जीवन बचे

पुण्य का है ये काम

रक्त दान से होता नहीं

शरीर में रक्त का आभाव

कतरा कतरा रक्त कहे

ह़र बूंद में जीवन बसे

लहुलुहान

रक्त रंजित हो गयी माट्टी

रणभूमि में लहुलुहान हो

गिरा जब वीर जवान

वेदना से कहराये जवान

सुनके करुना भरी चीत्कार

अश्रु बह आये नयनों के द्वार

हो गयी आँखे भी लाल

माट्टी और आँखे दोनों हो गयी लहुलुहान

तोड़ना

पल में आपने हमें बेगाना बना दिया

दिल लेकर दिल तोड़ना सीखा दिया

सितम पहले ही कम ना थे

आपने आंसुओ का दामन थामा दिया

खुद से खुद को बेगाना बना दिया

अधूरी जिन्दगी

कहते है जो , जिन्दगी बिन तुम्हारे अधूरी थी

उन्हें क्या मालूम , प्यार क्या होता है

तुम नहीं थी , तुम्हारी यादें थी

इस अकेलेपन की तन्हाई में

साया बन मेरे साथ थी

तो कैसे फिर जिन्दगी अधूरी थी

जीवन की डोर

थामे साँसों की डोर

ह़र बंधन को तोड़

मेरे मन के चितचोर

जिद है अपनी भी

बिन तुझसे मिले

टूटने ना देंगे ये डोर

तुझसे ही बंधी है

मेरे जीवन की डोर

बेचारी किस्मत

बरसों बीत गए आप से मिले हुए

यूँ लगे सदियाँ गुजर गयी

आप से बिछड़े हुए

दीवानगी आज भी वही है

तस्वीर दिल में आज भी वही है

कुदरत ने दी कैसी ये बीमारी है

आज भी आपके इन्तजार में बैठी

बेचारी किस्मत हमारी है

मालूम

कौन क्या सोचता है मालूम नहीं

पर हम आपके बारे में सोचते है

ये मालूम है

आप क्या चाहते है मालूम नहीं

पर हम आपको दिलो जान से चाहते है

ये मालूम है

Thursday, June 24, 2010

सच्चा दोस्त

सच्चा दोस्त एक ही है काफी

यूँ तो राह के ह़र मोड़ पे मिले कई

बने नए दोस्त कई

पर आप की बात ही कुछ ओर थी

क्योंकि आप औरों से अलग थी

मुहफट थी मगर दिल की सच्ची थी

हीरा

पत्थर भी बन जाये अनमोल

सवारे उसका जब रूप कोई

हुनर से तराशे जब कोई

तब पड़ जाये सारी चमक

उसके आगे फीकी

ओर वो बन जाये अनमोल

कहते है इसीलिए

हीरा है सदा के लिए

किताब

खोली जो किताब

मिला ये ज्ञान

प्यार में है एकता

सच में है सफलता

सबक है ये सबसे महान

बदल गयी जिन्दगी की रेखा

खत्म हुई जब किताब

Sunday, June 20, 2010

अपना दिल

पास हो तो आस है

वर्ना क्या

अपना दिल अपने पास है

पर इसको भी किसीकी तलाश है

जो समझे इसकी आवाज़

बस उसका ही इन्तजार है

वर्ना क्या

अपना दिल अपने पास है

खट्टा मीठा अनुभव इसके पास है

जब तक धड़कन दिल के पास है

तब तलक आस है

वर्ना क्या

अपना दिल अपने पास है

बर्बाद

सुनलो ओ जनाब

हम है लाज्जबाब

करना ना कोई गुस्ताखी आप

वर्ना खा जाओगे मात

हम है बादशाह

अपनी सल्तनत के

झुकते नहीं किसीके आगे

सिवा खुदा डरते नहीं किसी बला से

इसलिए ओ जनाब

रहना आप होशियार

नहीं तो हो जाओगे बर्बाद

घटा

महकी महकी फिजाये

बहकी बहकी हवाये

हो चाँदनी से सराबोर

बिखरा रही घटा घनघोर

देख इस अनुपम छटा को

मुस्कराने लगे फूल भी

आनन्द

कल्पना को अगर लग जाये पंख

टूटने लग जाये ह़र तिल्सिम का रहस्य

इस आंधी में

डूबने लग जाये जब मन

कल्पना लोक में ही

विचरण करने लगे तब मन

क्योंकि इसमें ही है

रोमांच के साथ मनोरंजान का आनन्द

अपनी भी बात

क्यों ना ऐसा करे

आओ हम तुम मिल चिठ्ठी लिखे

बात जो कह नहीं सके

ख़त के जरिये , शब्दों में वया करे

खोल दे दिलों के राज

सुनके एक दूजे के दिलों का हाल

क्या पता बन जाये अपनी भी बात

जुड़ जाये अपने भी दिलों के तार

थामे एक दूजे का हाथ

कर दे मोहब्बत का ऐलान

पुचकार

देख अपने को दर्द जुबा पे चला आया

मन सिसक उठा

दिल रो पड़ा

आँखे छलछला आयी

गले लगा पुचकारा जो प्यार से

ना दर्द रहा

ना दर्द का अहसास रहा

छुटकारा

तन्हाई का आलम टूटे नहीं

तंग गलियों में मन लगे नहीं

अकेलेपन का भय दल से दूर जाये नहीं

खुद से लड़ने की हिम्मत नहीं

इस तन्हाई का कोई इलाज नहीं

शायद मरकर भी इससे छुटकारा नहीं

शोला

प्यार का शोला दिल में ऐसा भड़का

तेरे लिए जलते अंगारों पे चल पड़ा

यकीन था तेरे दामन तले

ओश की शबनमी बूंदों सा

भरपूर प्यार मिलेगा

जो ह़र मरहम के घाव भरेगा

Monday, June 14, 2010

कदम

संभल संभल के रखो कदम

फिसल ना जाये कहीं कदम

डगर है कठिन जिन्दगी की मगर

कदम रखो सही राह पर अगर

होगी मंजिल कदमों के करीब तब

यह है कामयाबी के क़दमों का मंत्र

इसलिए संभल संभल के रखो कदम

जात

ओ मौला मेरे

मुझको मेरी जात बता दे

हिन्दू या मुसल्मा

ये मुझको बता दे

कैसे पुकारू तुझको

राम या खुदा

ये मुझको बता दे

हो सके तो कर दे बस इतना सा

इंसा मुझको रहने दे दे

कर कुछ ऐसा

ह़र मजहब में देखे तेरा एक सा ही चेहरा

मिट जाये दिलों से दूरियाँ

ओ मेरे रबा

मुझ पर इतनी दया कर दे

मुझको मेरी जात बता दे

गमों का हमराज

जब कभी बनाना हो किसी को

अपने गमों का हमराज

कर सकते हो हम पे ऐतबार

दर्द आप का कर लेगे अपने नाम

अपना सुख कर देगे आपके नाम

गले लगा भुला देगे गमों की बात

आपके जीवन को खुशियों से कर देगे गुलजार

सावन की फुहार

रुत घनेरी छाई

सावन की घटा चली आयी

काले काले बादलों में

पानी की बुँदे ले आयी

गरजने लगे अम्बर

बरसने लगी वर्षा मुसलाधार

छा गयी सावन की फुहार

Tuesday, June 8, 2010

इन्तजार

इन्तजार इन्तजार

हर घड़ी इन्तजार

इन्तजार इन्तजार

चुभे मन के तार

थक गया कर कर के

इन्तजार इन्तजार

हर घड़ी इन्तजार

इन्तजार इन्तजार

दर्द बहे नयनन के द्वार

सुख गया आंसुओ का तालाब कर कर के

इन्तजार इन्तजार

हर घड़ी इन्तजार

इन्तजार इन्तजार

अब रही ना जीने की मुराद

उखड़ने लगी है साँसे कर कर के

इन्तजार इन्तजार

हर घड़ी इन्तजार

इन्तजार इन्तजार

बेईमान

तन्हा अकेला खड़ा था भीड़ में

कोई भी अपना ना था कहने को पास

जिसे भी माना अपना यार

वो ही निकला बेईमान

मुक़दर ही ऐसा मिला

यकीन कहीं खो गया

पुकारा खुदा को

मगर वो भी अनसुनी कर गया

हमको हमीसे अकेला कर गया

आम

इजाजत अगर मिल गई होती इतनी सी

खता हमसे हुई नहीं होती कभी

जब जब की फ़रियाद

अनसुनी करदी आपने हर बार

मजबूर अगर आप थे

लाचार विवश हम भी थे

सिर्फ़ एक बार जो कह दिया होता

गुनाह हमसे आज ना होता

बात जो थी ख़ास

वो ना बनती आम

मुस्करा के

मन कुछ कहने को हुआ

उनसे कुछ सुनने को हुआ

थोड़ी झिझक हुई

देख उनकी आँखों मैं

हम शरमा गए

वो मुस्करा के बगल से गुजर गए

मन चाह कर भी कुछ कह ना पाया

ना उनसे कुछ सुन पाया

खोई यादे

आज दिल बचपन में लौट जाने को मचल रहा है

खोई यादे समेटने को आतुर हो रहा है

वक्त जो पीछे छुट गया

उससे मिलने व्याकुल हो रहा है

मन आज पीछे छूटे बचपन से

नाता जोड़ने की कोशिश कर रहा है

आहट

चाल में उनके नजाकत थी

हर कदम पे धीमी आहट थी

हर आहट में सरगम थी

सरगम में ऐसी नफासत थी

उनके आने की ख़बर

उनके आने से पहले

कोसो दूर पहुँच जाया करती थी

Thursday, June 3, 2010

आँखों में

दर्द नूर बन बह आया

पूछ लिया साथी ने

क्यों अश्क बह गया

कह दिया हमने

धूल आँखों में समा गई थी

चुभन कुछ ज्यादा हो रही थी

इसलिए रो के आँखे साफ़ कर ली

काश बारिश हो रही होती

अश्क उसमे घुल गए होते

साथी को पता भी ना चलता

ओर हमको उनसे झूट कहना नहीं होता

जोर आंसुओ पे चलता नहीं

दर्द की ओर कोई दवा नहीं

आंसुओ के सिवा इसका ओर कोई आसरा नही

दिलों के पास

सदी गुजर गई तुमसे मिले हुए

तरस गए नयन मिलने के वास्ते

पर आस की डोर कोई बंधी हुई है

जो हम तुम को जोड़े खड़ी है

यही तो अपने रिश्ते की अच्छी बात है

दूर होते हुए भी

एक दूजे के दिलों के पास है

सकून भरे पल

दो पल सकून के मुझको दे दो

माँ के ममता भरे आँचल में

दो पल चैन की नींद मुझको सो लेने दो

थक गया , सो नहीं पाया

मौला मेरे रहम करो

कुछ पल के लिए ही सही

वो मासूम बचपन लौटा दो

माँ की गोद में फिर से

सर रख सो जाऊ

बस वो सकून भरे दो पल मुझको भी दे दो

लाली

देख आप के चहरे की लाली

मौसम का मिजाज भी लाल हो गया

आप की लाली के आगे

चाँद भी शरमा गया

सांझ की शमा को लाल बना

ये दिन आप की लाली के नाम कर गया

दिल के पास

यार तुम हो प्यार

करो ना इनकार

अब रूठना छोडो मेरे यार

बन के तेरे सर के ताज

रखूँगा हर पल तुझको दिल के पास

तुम ही मेरी मुमताज

तुझसे हसीन ना कोई ओर इस जग में

सच तो यही है मेरे यार

हम तो करते है सिर्फ़ तुम ही से प्यार

यारी से प्यारी

यारों में जब स्नेह लगे बड़ने

प्यार लगे रंग अपना दिखलाने

तोड़ सारी हदे

यारी को मिल जाता है एक नया नाम

मोहब्बत है इसका नाम

यारी जिंदाबाद

Sunday, May 30, 2010

फेहरिस्त

राज आप की ख़ामोशी का जान ना पाये

चाह कर भी आप को हँसा ना पाये

सूरत रोनी फब्बती नहीं आप पे

कैसे बदले इसे

खिलखिलाती आप रहे

चाहे हमें दोस्त ना पुकारो

मगर इल्तजा है बस इतनी सी

दुश्मनों की फेहरिस्त में

नाम हमारा भी हो

बेजान तस्वीरे

प्यार के रंग भर दे जब तस्वीरों में

बोल उठती है बेजान तस्वीरे

देख के उन रंगों को

जादू है प्यार का

तभी प्राण मिल जाते है बेजान को

प्रेम रास

बांसुरियां दिल की बजी

ओढ़नी उड़ने लगी

झांझरिया बजने लगी

सुन के प्रेम रस

राधा दीवानी होने लगी

नाच उठी गोपियाँ

मोहन संग राधा प्रेम रास रचाने लगी

अनछुई तलाश

कैसी ये तलाश है

जो आज तलक अधूरी है

ढूंड रहा मन किसको

इससे दिल भी अनजान है

है वो क्या

जिसके लिए आंखे बेताब है

शायद मन खुद से अनजान है

तभी कोई अनछुई तलाश है

अजीज

जिनकी हँसी पे हमने जग लुटाया

उन्होंने ही हमें यार ना बनाया

मुलाक़ात हुई जब

अजनबी कह ठुकरा दिया

भुला सका नहीं उस पल को

बददुआ दे सका नहीं

मेरे उस अजीज दोस्त को

कहा सदा खुश रहो

यही दुआ करेंगे तुम्हारे वास्ते

Saturday, May 29, 2010

चाँद चला गया

सितारों से सजी महफ़िल में

चाँद एक नज़र आया

शाम ए महफ़िल उसकी चाँदनी से थी गुलजार

लगी थी सितारों में होड़

हाथ ना लगी मगर किसीके वो

छिपा लिया खुद को बदरी में

रह गए सितारें बस आँखे टिमटिमाते

ओर चाँद चला गया महफ़िल छोड़

Friday, May 28, 2010

बेटियाँ

अनमोल होती है बेटियाँ

पर समाज की उनके पैरों में

पड़ी होती है बेड़िया

जन्म लिया जिस द्वारे

छोड़ जाना पड़े उसी द्वारे

ह़र रस्म निभाती है बेटियाँ

कभी बेटी बन, कभी बहन बन

कभी पत्नी बन , कभी माँ बन

एक ही जन्म में

कितने जन्म लेती है बेटियाँ

पर दुःख उसका कोई समझे नहीं

प्रसव पीड़ा कोई जाने नहीं

फिर भी वंश बढाती है बेटियाँ

ममता ओर त्याग की मूरत होती है बेटियाँ

कुदरत की सबसे हसीन रचना है बेटियाँ

सच यही है

दुनिया में सबसे अनमोल होती है बेटियाँ

दुआ रब से

खाब्बों में ख्यालों में

अक्सर मिल जाते है

दिल की राहों में

पर चले क्यों जाते है

जब खुल जाती है आँखे

काश सपना सच हो जाये ये

तुम हमको मिल जाओ बस

दुआ रब से करते है बस यही अब

चुभन

व्यंग बाण चले ऐसे

भावनाए भेद उठी

चिंगारी ये जो लगी

सीने में आग भभक उठी

दर्द जो दिल में छिपा था

चहरे पे उभर आया

चुभन आंसू बन आँखों से बह पड़ी

जीवन का मोड़

सूर्य अस्त हो चला

सांझ घिर आयी

खड़े थे जिसके इन्तजार में

वो बेला ना आयी

खुदगर्ज हो गया

भूल गया एक पल में सबको

नाता तोड़

अँधेरे में निकल पड़ा

करने खुद की खोज

अस्त हो गया जीवन का मोड़

Wednesday, May 26, 2010

तेरी डोली

आसमां सर पे उठा लेंगे

चिल्ला चिल्ला जग को सुना देंगे

तुम अगर हां कह दो

तेरी डोली अपने घर ले आयेंगे

भाव भिभोर

नाच रहा है मन का मौर

उमंग भर रहा है सावन का शौर

मृदंग पे पड़ी जो थाप

खुल गए मधुर संगीत के द्वार

बज उठी झांझरिया

थिरकने लगे पावँ

उमंग और उल्हास भरे इस क्षण को देख

नाच रहा है मन का मौर

हो रहा है दिल भाव भिभोर

महफ़िल

काश वो महफ़िल फिर सजती

शमा फिर से रोशन होती

परवाने को ये मगर मंजूर ना था

जला दी महफ़िल उसी शमा से

रोशन जिससे ही वो महफ़िल थी

खत्म कहानी

मंजूर उनको ये ना था

साथी बने कोई हमारा

ये उनको गंवारा ना था

पर जालिम दिल की लगी ऐसी थी

हुस्न ओर शबाब से ही दिल की महफ़िल थी

दिल था की अपनी आदते बदलता ना था

मुश्किल यही थी

इस कारण उनकी और हमारी जमती ना थी

ओर कहानी शुरू होती नहीं थी की

कहानी खत्म हो जाती थी

Tuesday, May 25, 2010

गुम

पूछा उन्होंने ,

कहाँ गुम हो गए थे तुम

कहा हमने ,

ढूंडा होता हमें सितारों की महफ़िल में

चाँदनी रात में आसमाँ निहारते हुए

दिल पे अपने हाथ रख जो पुकारते

हमें तुम

ह़र सितारों में अक्स हमारा ही पाते तुम

निखार

कला निखर आयी

आस जो प्रेरणा बन आयी

रचना ऐसी लाजबाब बनी

फूलों की जैसे सुन्दर माला गुंथी

अंतर खुल गए सब मन के

सप्त लहरियों ने जैसे मधुर तान है छेड़ी

दिव्य प्रकाश जगमगा उठा

अँधेरे में जैसे रौशनी की किरण बिखर आयी

वक़्त की रफ़्तार

दर्पण देखा तो शक्ल अनजानी सी नज़र आयी

गौर से करीब जाके देखा तो

जानी पहचानी नज़र आयी

यादों को टटोला तो

खुद की प्रतिबिम्ब नज़र आयी

वक़्त इतनी तेजी से कब गुजर गया

अहसास ही ना हो पाया

ओर वक़्त की इस रफ़्तार में

मानव खुद की शक्ल भी भूला गया

ग़मों का सौदा

मुस्कान के बदले हम तो

ग़मों का सौदा करते है

लोगो को मुस्कराते देख

अपने गम भूल जाते है

ओर खिलखिलाते हुए

उनकी खुशियों में शरीक हो जाते है

बुलंदी

कहते है बुलंदी छूने के लिए

हौसलों की जरुरत होती है

लक्ष्य कर अभियान को

मैदान में जो कूद पड़ते है

बिन हथियारों के भी वो

जंग जीत जाते है

ऐसे ही लोग जीवन में

कामयाब कहलाते है

ग़मों का रिश्ता

मुस्कराते रहिये

गम भुलाते रहिये

खिलखिला के

ग़मों को गले लगाते रहिये

फिर ना कोई दर्द होगा

ना ग़मों से कोई रिश्ता होगा

तरस

हवाओं ने रुख क्या बदला

मौसम ही बदल गया

रेगिस्थान प्यासा ही रह गया

पानी की एक बूंद को

धरती तरस गयी

Monday, May 24, 2010

मात पिता का साया

खुश किस्मत होते है वो

जिनके सर पर मात पिता का साया हो

स्नेह ओर ममता से भरे

उस पल को किसीकी नज़र नहीं लगती

इस आँचल की छत्र छाया के आगे

ह़र खुशियाँ बोनी लगती है

इतनी बुरी

जिन्दगी इतनी बुरी भी ना थी

पर किस्मत साथ ना थी

खड़े थे भीड़ में अकेले

पर साथी कोई साथ ना थी

जरुरत पड़ी जब कभी

सिर्फ अकेलेपन की उदासी पास थी

छत्र छाया

हसरतें बड़ी छोटी सी थी

जिस अंगुली को पकड़ चलना सिखा

जिस के नाम से नाम मिला

उस की छाया में जीवन बीते

मंजूर किस्मत को ये ना था

हसरत अधूरी ही रह गयी

सर से पिता की छत्र छाया चली गयी

जिन्दगी भीड़ में अकेली खड़ी रह गयी

संकुचाहट

बड़ी बेमुरब्बत है जिंदगानी

जन्म लेते है जब

तब बजाते है ढोल थाली

हो जाये कोई भूल तो

जीवन भर देते है गाली

मर जब जाते है

झूटे आंसू बहाने चले आते है

मगर जरुरत पड़े जब कभी

तब पहचान से इनकार कर जाते है

क्यों गले पड़ रहे हो

क्यों हमसे नाता जोड़ रहे हो

बोलने में भी नहीं संकुचाते है

सच ही तो है

जिन्दगी सचमुच बड़ी ही

बेरहम बेमुरब्बत है

सलामती

जब भी मैंने आवाज़ दी

तुने अनसुनी करदी

आज जब तुने पुकारा

मैं बहुत दूर निकल आया

अब लोट आना मुमकिन नहीं

दुआ फिर भी करेंगे

तुम ज़हा भी रहो

सदा सलामत रहो

भटकता

दावा करते है सभी

देखि है जिन्दगी हमने करीब से

पर यह तो उस रहस्यमय तिल्सिम की

अनबुझ पहेली है

गुड अर्थ समझ जिसका सका ना कोई

नादान मानव फिर भी कहता फिरे

जिन्दगी क्या है

मुझसे बेहतर ओर कोई वया नहीं कर सकता

ओर खुद ही उसकी तलाश में है

भटकता फिरता

नई शुरुआत

बदल गया मैं औरों के लिए

जो खुद ना बदल सका अपने लिए

सिखने लगा हु

ग़मों की आँधियों में

अविचलित खड़े रहना

धैर्य और संयम से निर्णय करना

इन कंधो पे जो जिम्मेदारी आन पड़ी है

द्वेष ईष्या को छोड़

एक नई जिन्दगी की शुरुआत करनी है

कभी

अब तुम कभी ये ना कह पाओगी

ख़त तुम्हे लिखा नहीं

नजराना कोई भेंट किया नहीं

क्योंकि जब दिल ही हमने अपना

तेरे नाम कर दिया

तो फिर दिखावे की जरुरत नहीं

प्रेम गीत

आओ दिल की आवाज़ को एक पहचान दे

प्यार के सुरों से इस की सरगम को सजाये

संगीत इतना मधुर बनाये

लय और ताल के खुबसूरत मिलन से

दिलों में प्रेम रंग घुल जाये

अपना प्रेम गीत अमर हो जाये

सिसक

जिस्म जब तलक बिकता रहेगा

अंजुमन की उस चौखट पे

मेला तब तलक लगता रहेगा

इस शौर में डूबी चीत्कार भरी आवाज़

कोई सुन ना सकेगा

अँधेरी भरी जिन्दगी

यूँ ही घुट घुट

इन बदनाम गलियों में

कब ख़ाक ये सुपुर्द हो जायेगी

किसी को खबर भी ना होगी

जिन्दगी की तरह कब्र भी सूनी रह जायेगी

दुआ करने के लिए भी कोई अपना ना होगा

जिन्दगी सिसक सिसक कर यूँ ही मर जायेगी

Thursday, May 20, 2010

चाँद की आस

निकलो जब घर से बाहर

तो यूँ ना इतराया करो

खुली जुल्फों को

यूँ ना लहराया करो

बैठे रहते है जिस चाँद की आस में

उसे यूँ ना घूँघट में छिपा के रखा करो

मेरी धड़कने

तुम खुश हो तो

खुश है मेरे दिल का जहान

देख के तेरी मासूमियत

आबाद है मेरे दिल का ज़हा

सुन के तेरी हँसी

चल रही है दिल की धड़कने मेरी

खुशहाल जीवन

काँटों में रह के भी

जो मुस्कराए गुलाब की तरह

जिन्दगी के ह़र पल जीये वो

जिंदादिल इंसान की तरह

यही है वो मंत्र

जो बनाये खुशहाल जीवन को

हँसी

खुदा करे हमारी हँसी भी आप को मिल जाये

ताकि आप ह़र समय मुस्कराते रहे

उदासी के मुखोटे को उतार

गुलाब की तरह सदा खिलखिलाते रहे

राहों में

मैं शाहिल तू किनारा

मैं मौज तू धारा

फिर कैसे ना हो

मिलन हमारा तुम्हारा

आ समां जाये एक दूजे की बांहों में

कही बंट ना जाये प्यार मंजिल की राहों में

उसका ही नाम

जुल्फें बिखरी लटें उलझी

पवन चली साँसे थमी

हमदम हमकदम था कोई पास

जादू भरी बातों से

उड़ा ले गया दिल की तान

धडकनों में समा गया

उसका ही नाम

प्रेम रोग

मन तेरे बिना लागे नहीं

बिन तुझे देखे रहा जाये नहीं

लग गया रोग ये कैसा

नींद आँखों में आती नहीं

दिल बातें करे खुद से

कैसी ये अगन लगी

दुनिया कहे दीवाना हमको

हँस रही कुदरत देख बेहाल हमको

इस रोग का इलाज नहीं कोई

प्रेम रोग है ये तो

प्यारे इंसान

दोस्त हो तुम बड़े प्यारे इंसान हो

थोड़े भोले हो थोड़े नादान हो

दिल के फिर भी सच्चे हो

कोई समझे या ना समझे

पर दोस्ती की खुबसूरत मिशाल हो तुम

मासूम परी

देखे हजारों गुलाब

पर देखा ना तुम सा शबाब

ओस की शबनमी बूंदों में लिपटी

खिलती कलि

लग रही थी मासूम परी

सिमट आयी सारी कायनात जैसे

बनके गुलाब की पंखुरी

महक उठी फिजा

फूल बन गयी कलि

Saturday, May 15, 2010

ग़मों के बादल

नकाब उदासी को उतार दीजिये

ह़र कोई परेशान है

कहीं न कहीं किसी न किसी गम से

ह़र एक का कोई न कोई नाता है

जो जीते है सदा मुस्कराते हुए

उनके ग़मों के बादल भी पल में छट जाते है

कह रहा है वक़्त

वक़्त वक़्त कह रहा है वक़्त

रुकता हु मैं कभी नहीं

चलते रहना ही मेरी जिन्दगी

जो कदम ताल मिला ना पाये मेरे साथ

छुट जाये उनका मेरा साथ

निरंतर जो चले मेरी रफ़्तार

कदम उनके बढ चले कामयाबी की ओर

वक़्त वक़्त कह रहा है वक़्त

करलो कदर वक़्त की

वक़्त थमता नहीं

कोई कितना भी लगा ले जोर

वक़्त वक़्त कह रहा है वक़्त

पन्ने

गुजरे कल की किताब खोलना नहीं चाहता

गुजरा कल अच्छा ना था

एक डरावना सपना था

इसलिए वक़्त के गर्द से दबी किताबों के पन्ने

पलटना नहीं चाहता

जब कभी चलती है पुरानी यादों की आंधी

पन्ने लगते है ऐसे फरफराने

देख के जिसको रूह भी सहम सी जाती है

एक पल के लिए साँसे भी थम सी जाती है

मीठे बोल

मुस्करा के कह दो दो मीठे बोल मेरे यार

हो जायेगी दुनिया दीवानी तुम्हारी

नज़र आएगी ह़र ओर हरियाली ही हरियाली

दुश्मन भी दोस्त बन जायेंगे

फूल दे गले लगा जायेंगे

मेरा नाम

तू जो रचा ले मेहंदी मेरे नाम की

तो तेरे सुर्ख लबों पे अपने प्यार की लाली लगा दू

तू जो भर ले मांग में सिंदूर मेरे नाम का

तो तेरे दिल की धडकनों पे मेरा नाम लिख दू

Saturday, May 8, 2010

अभिव्यक्त

कला हुस्न की मोहताज नहीं

मंथन है ये तो विचारों की

स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त सुरों की

प्रेरणा है ये तो आत्मसम्मान से जीने की

किस्मत का खेल

फिर रात यू ही गुजर जायेगी

रूह तड़प के रह जायेगी

किस्मत का खेल है ये तो

बाँधी दो जाने ऐसे डोर से

मिलन उनका हो सके नहीं

इन्तजार की शाम ढले नहीं

लगन की अगन बुझे नहीं

काटे रात कटे नहीं

Thursday, May 6, 2010

याददाशत

खुद को समझा रहा हूँ

दिल को बतला रहा हूँ

ऐतबार ना कर इतना

दगेबाजों का

कहीं याददाशत भी बचे नहीं

पहचान अपनी बतलाने को

गुजरे वक़्त की दास्तान सुनाने को

खट्टी मीठी

तुम कुछ ज्यादा ही चरपरी हो

कभी कभी मिर्च से तीखी

तो कभी शहद से मीठी हो

या यूँ कहू

खट्टी हो मीठी हो

दिल की बड़ी ही भोली हो

पर तुम जैसी भी हो

दिल की बड़ी अच्छी हो

जाने जाना

आना है तेरी बाहों में

ओ जाने जाना

भुला के खुद को

समाना है तेरी साँसों में

ओ जाने जाना

छुपा लेना है खुद को

तेरी जुल्फों के साये में

कह रही है ख़ामोशी तेरी

उड़ा के आँचल बुला रही हमें

आना है आगोश में तेरी

पाना है तुझको इसी जन्म में

कह रही है दिल की धड़कने यही

ओ जाने जाना

ओ मेरी जाने जाना

Wednesday, May 5, 2010

आँखों ही आँखों में

करनी हो जब दिल से दिल की बात

करना हमें तुम याद

पिटारा मोहब्बत भरी बातों का खुल जायेगा

शर्मों हया को छोड़

आँखों ही आँखों में

प्यार हो जायेगा

ऐसी डोर

बांधे रख सके हमें अपने दामन से

डोर ऐसी बनी नहीं

परवाने है हम तो

फिर भी शमा हमें जलाती नहीं

कब कहाँ कौन से फूलों पे

हम जैसे भवरों का बसेरा हो

पता नहीं

आज दिल हसीन है रंगीन तितलियों से

कल की हमें फिक्र नहीं

व्यक्तित्व रंग

रंगों में ही बसता जीवन है

रंगों से खुशियों की बरसात

रंगों से ही व्यक्तित्व की पहचान

बिन रंग जीवन है बेजान

चूहा

चूहा था बड़ा उत्पाती

करता था बड़ी शैतानी

खा जाता था किताब कापी

पकड़ में आता नहीं था

बात वो मानता नहीं था

आखिर बच्चे हो परेशान

ले आये काली बिल्ली पहलवान

देख के बिल्ली भीमकाय

डर गया चूहा शैतान

हो गया दुर्भर बिल से निकलना

पहरे पे बैठी रहती बिल्ली रानी

गुहार लगाई चूहे ने

बच्चों कर दो मुझको माफ़

छोड़ घर तुम्हारा

दूर कहीं चला जाऊँगा

उत्पात अब ना कभी करूँगा

बच्चों ने कर दिया उसे माफ़

चूहा चला गया चुपचाप

Tuesday, May 4, 2010

हमारा दिल

जिन्दगी के इस मुकाम पे

फितरत अब बदल नहीं सकती

आदत दिल लगाने की

छुट नहीं सकती

अरमान अब बस रहा है

यही बाकी

आये वक़्त जब जनाजे का

कांधा लगाने भी आये

चार हसीन बालाये ही

ताकि जीवन के इस अंतिम सफ़र में भी

लगा रहे दिल हमारा भी

प्यार भरा दिल

दिल को अपने लिफ़ाफ़े में कैद कर

नाम उस पे आप का लिख नहीं पाऊंगा

हमारे चाहने वाले बेशुमार

कैसे उन नाजुक कलियों का

प्यार भरा दिल मैं तोड़ पाऊंगा

काँटा

कोई छू ले तुझ जैसे खिलते गुलाब को

खता ये मुझे गंवारा नहीं

इसलिए काँटा बन

तुझे अपनी पनाह में मैं ले आया

सच्चे इश्क की इबादत में

दिल अपना तुझ पे कुर्बान कर आया

Sunday, May 2, 2010

डरावना

वीभत्स वीभत्स , घिनौना घिनौना

बड़ा ही डरावना था वो सपना

शक्ल कहूँ या नरपिचाश

अक्स था बड़ा ही खौफनाक

तिल्सिम टूटा जब इस मंजर का

निंद्रा भाग गयी छोड़ सपना

नयनों के आगे अब भी घूर रहा

बड़ा ही कुरूप वो चेहरा


साईं राम

ओ मालिक सुनता है तू सब की फ़रियाद

करता है सबकी नैया पार

अर्ज करता हु मैं भी साईं राम

आया हु तेरी शरण आज

रख दो मेरे सर पे हाथ

करलो मुझको भी अपने भक्तों में शुमार

ओ मेरे साईं राम

करलो मेरी आराधना के फूल स्वीकार

पुकार रहा है भक्त नादान

चले आओ ओ मेरे राम

ओ साईं राम मेरे साईं राम

Saturday, April 24, 2010

वो भी जाने

बुलंद है होसले इतने आज

खुदा भी अगर कुछ मांगे आज

पल में निकाल दे दु दिल उसके हाथ

वो भी तो जाने

दिल लगानेवालों का क्या होता है हाल

मकसद

उफनती लहरों पे चले जा रहे है

बहते अश्को में डूबे जा रहे है

उजड़ गयी है वादियाँ

लुट गयी है दुनिया

सितम वक़्त ने ऐसा दिया है

ह़र कोई बदला बदला लग रहा है

खत्म अब आस है

जीने के लिए ना कोई मकसद पास है

अनुभूति

कुछ तो है कहीं तो है

अहसास तभी तो है

एक अनछुई सी अनुभूति का है

बहुत ही हसीन जज्बातों का मेला है

जज्बातों के इस मेले में

ह कोई

जो अपनी ओर आकर्षित किये जा रहा है

अनुभव जिस आकृति का हो रहा है

दिल मानस पटल पर उसकी तस्वीर बना रहा है

जमाने का रंग

ओ गाँव की छोरी

मैं शहर का छोरा

कैसे होगा मिलन ये तेरा मेरा

बदल गया है ज़माना

भाता नहीं नए जमाने का रंग

तुझको जरा भी

ऐसे में कैसे करलू

जीवन साथ बिताने का वादा

चुपके से

ढूंड रही है नजरे

बिछा के पलके

पर अभी तलक नज़र आयी नहीं

साये की झलक भर

अनजाना अजनबी वो साया

चुपके से जो सपनों में चला आया

नींद हमारी चुरा ले गया

अब तो बस बैचैन है राते

करवट बदलते बीत रही है राते

लाजबाब

कहते है लोग आप बड़े ही दिलवाले है

ह़र एक से दिल लगाने तैयार है

अंदाज बड़ा ही आशिकाना है

सुन आप की हँसी

जाते कदम भी थम जाते है

पर आप बड़े ही संग दिल इंसान है

दिल लगा के

दिल जलाना ही आप का काम है

फिर भी सारी तितलियाँ आप पे मेहरबान है

कोई कुछ भी काहे

आप आशिक लाजबाब है

सुर्खियाँ

सुर्ख़ियों में रहने वालों का

जीवन औरो से कुछ अलग ही है

हो अगर अच्छे कारणों से

तो जीवन जीने का रंग कुछ ओर ही है

बिरले ही होते है वो

जो सदा सुर्ख़ियों में बने रहने को

जीवन से जदोजहद करते रहते है

मौसम के रंग

उथल पुथल बदल फिरत है

मौसम के रंग हज़ार

कहीं बह रही पावन रूमानी

कहीं खिल खिला रही वादियाँ फूलों की

रंगीन है मौसम का मिजाज

मिलता है सकून

जब चलती है ठंडी वयार

उथल पुथल बदल फिरत है

मौसम के रंग हज़ार

दूर

भुलाना चाहो अगर किसीको

दूर जाना चाहो उसके साये से भी

करनी होगी यादों की खिड़कियाँ बंद

दफ़न कर देनी होगी ह़र बात सीने के अन्दर

तभी भूल पावोगे

परछाई से दूर जा पावोगे

Friday, April 23, 2010

सच्ची पहचान

कल तक जो पहचान थी

वो आज गुमनाम है

इस बदले समय में

अपनों के लिए भी अनजान है

वक़्त सदा एक सा नहीं होता

समय बड़ा बलवान है

बुरे वक़्त ही होती है

अपनों की सच्ची पहचान

चारदीवारी

सिमट गयी जिन्दगी चारदीवारी में

आँखे हो गयी सूनी

दिल हो गया पत्थर

अकेलेपन तन्हाई इनका ही अब साथ है

जिन्दगी खुद से अनजान है

आंसुओ का भी अब तो नहीं साथ है

तड़प रही है जिन्दगी

हार गयी मैं खुद से

कह रही है जिन्दगी

सिमट गयी है जिन्दगी

चारदीवारी में कैद हो गयी है जिन्दगी

शिकायत

जिन्दगी तुझ से कोई गिला नहीं शिकवा नहीं

जो तुने दिया वो काफी नहीं

फिर भी तुझसे कोई शिकायत नहीं

अरमा थे बहुत पर सारे पूरे हो ना सके

मौके तुने दिए नहीं

ओर हासिल खुशियाँ हुई नहीं

फिर भी तुझसे गिला नहीं

तम्मना है अब बस इतनी सी

फुर्सत अगर मिले कभी

तो घर मेरे भी आना जिन्दगी

आके गले हमको भी लगा जाना ये जिन्दगी

तुम आओ या ना आओ

पर अब कोई शिकायत नहीं तुझसे ये जिन्दगी

हमारी बात

किया है जो वादा वो पूरा करेंगे

जीवन अपना तेरे संग

आधा आधा बाँट लेंगे

यू रहो ना उदास

करो मेरा विश्वास

थामा है जो हाथ तेरा

कैसे तुने सोच लिया

बीच भंवर में छोड़ दूंगा साथ

हम तो है तेरे ही सर के ताज

याद रखना हमारी ये बात

Sunday, April 4, 2010

आहट

वक़्त थम सा गया

साँसे रुक सी गयी

महबूब की आहट जो सुनी

दिल में धड़कन लोट गयी

चहरे पे मुस्कान खिल गयी

स्वामी

श्रद्धा सुमन अर्पण करू

करो आप स्वीकार

दर्शन देने स्वामी चले आओ एक बार

पुकार रही अर्धांगी आप का ही नाम

Saturday, April 3, 2010

श्रद्धा के फूल

छुट गयी आप की वो अंगुली

पकड़ जिसे चलना सीखा

रह गयी सिर्फ यादें

प्रेरणा बन जीवन मार्ग दर्शाने को

आशीर्वाद ऐसा देना हमें

आपकी दिव्य पुंज से

सुशोभित रहे जीवन हमारा तो

भूल चुक हुई हो तो करना हमें माफ़

अपने श्री चरणों में

करना हमारी श्रद्धा के फूल स्वीकार

ना कोई अपना

हमने जिसको भी अपना कहा

उसने ही हमको धोखा दिया

ऐतबार अब रहा नहीं

दिल अब कुछ कहता नहीं

सुनी हो गयी आँखे

खाली रह गयी बातें

थम गयी साँसे

खो गयी राहे

मिला धोखा ही धोखा

मिला ना कोई भी अपना

कैसे

दिल बनाया खुदा ने प्यार करने के लिए

कहा रखना सदा इसे संभाल के

पर चुरा लिए दिल मेरा तुने

अब कैसे किसी ओर से प्यार करू

मुसलाधार मेघ

बरस रही मेघा मुसलाधार

नाम नहीं ले रही थमने का

लगी कहर बरपाने मेघा

उफन ने लगी नदियाँ

भर गए शहर तालाब

ह़र ओर पानी ही पानी

डूब गए घर बार

तांडव मचाने लगी बाड़

देख के इस मंजर को

कह उठा मन चीत्कार

अब बस भी करो मेघा रानी

ओर ना बरसाओ पानी

फर्क

डगर डगर

टहर टहर

शहर शहर

पहर पहर

मगर अगर

करे है फर्क

यू ही बीत रही जिन्दगी

भूल के लक्ष्य

भटक रही जिन्दगी

समझ ना आई बात

लुट गयी जिन्दगी

डगर डगर

टहर टहर

शहर शहर

पहर पहर

घूम रही जिन्दगी

नामुमकिन

दिल अभी तलक भरा नहीं

तेरे हुस्न में है कितना दम

देखे बांधे रख सके हमें आप कब तलक

दीवानगी है खेल नहीं

मेरे लिए तुम किसी मुमताज से कम नहीं

पर बांधे रख पाना हमें मुमकिन नहीं

खो जाये

दिल कह रहा है तू अब आ भी जा

मैं छुपा लू तुझे बाहों में

तू छुपा ले मुझे तेरे आँचल में

खो जाये एक दूजे में

साँसों की डोर बंधी रहे

एक दूजे की चाहत से

सुन ले पुकार

दिल कह रहा है तू अब आ भी जा

बरस रहा अम्बर

बरस रहा अम्बर

बोल रही धरती

खिल उठी जिन्दगी

बारिस की शबनमी बूंदों से

लहरा उठी जिन्दगी

नए अंकुरों में

फ्रस्फुटित हो चली जिन्दगी

बरस रही मेघा

चमक रही बिजली

गरज रहा अम्बर

बोल रही जिन्दगी

काश

काश तुम पास होती

जिन्दगी सपनों सी हसीन होती

चन्दा की चांदनी होती

तेरे मेरे मिलन की रात होती

रुक जाती घड़िया थम जाते पल

काश तुम जो पास होती

छुपा चाँद

तेरे चाँद से मुखड़े के आगे

सितारों की महफ़िल भी फीकी है

क्यों झांके बाहर

तस्वीर तेरी जब दिल में बसी है

घूँघट तेरा उठाने हमें आना ही होगा

छुपे चाँद को नयनों के आगे लाना ही होगा

Thursday, April 1, 2010

देर

कहनी थी जो बात

वो तुम ने कह दी

अब कैसे काहे हम

तुम ने हमारे दिल की बात कह दी

करते हो प्यार हमसे

कहने में इतनी देर क्यों लगा दी

करीब

खिला गुलाब महकी फिजा

खली पलके उडी जुल्फें

पैगाम ये ले आयी

यार तुम हो दिल के करीब

ये हमको बतला गयी

तुम हो

आती नहीं हमें आपकी तरह

करना कविता और शायरी

कोशिश फिर भी की है

दिल की बात आप की तरह कहने की

सुन जिसके बोल दिल मचल उठे

ह़र साँसों में जिनका ही नाम धड़का करे

प्रियतम मेरे हसीन हो या ना हो

पर जो दिल को सबसे अजीज हो

वो तुम हो तुम हो

बातों में

गम इस बात का नहीं

हम आपसे बिछुड़ गए

दर्द है इस बात का

आप भी औरो की तरह बेवफा निकले

सिकवा कोई अब है नहीं जिन्दगी से

मगर अफ़सोस है इतना सा जरुर

क्यों हम भी आपकी बातों में आ गए

Monday, March 29, 2010

अधूरी कविता

शब्द कहीं खो गए

कविता अधूरी रह गयी

तलाशा बहुत टटोला बहुत

पर वापस मिले नहीं

टूट गए शब्द

बिखर गयी शब्दों की माला

ओर रह गयी कविता अधूरी

राह गुजर

दिल फ़िदा तुम पे मर मिटा

तरस रहे नयन तड़प रहा मन

तुम बिन अब चैन कहा

ओ मेरी राह गुजर

ओ मेरी शामे शहर

सुनले तू दिल की वफा

हो गया है ये तुझ पे फ़िदा

आके बाहों में दुनिया भुला जा

आ आजा , आके दिल में समां जा

ओ मेरी राह गुजर

ओ मेरी शामे शहर

खाब्बों में

खाब्बों में ख्यालों में

अक्सर कोई आता है

आके मुझे जगाता है

नगमे नए सुनाता है

ह़र ओर वही नज़र आता है

काश ऐसा होने लगे

सपनों की दुनिया से निकल

आके वो मझसे मिले

चाहत है वो हमारी

अब नहीं दुनिया उस बिन प्यारी

कहने का एक मौका हमको भी दे दे

रखेगें सर का ताज बना कर

चाहेंगे ना किसी ओर को

एक बार सपनों से निकल

आके वो हमसे तो मिल

Friday, March 19, 2010

धैर्य

धैर्य धर धीरज रख

मुश्किल घडी गुजर जायेगी

शांत रह विश्वास रख

ख़ामोशी के साथ

तूफ़ान गुजर जायेगा

ह़र रात की सुबह होगी

बुरे वक़्त के बाद

अच्छा वक़्त आयेगा

सबक है ये जिन्दगी का

ना कभी घबराना तुम

खुद पे यकीन रखना

तूफा गुजर जाने का

इन्तजार करना तुम

गोल

गोल गोल घुमे दिल की वॉल

छू लिया तुने हो गयी गोल

देख तुझको फुदक रही दिल की वॉल

तेरी प्यारी सी हँसी पे

हो गया दिल अपना गोल

तेरे सुन्दर गोल गोल नयनों के आगे

हारी अपनी दिल की वॉल

सुनके तेरी इकरार हो गयी

अपनी दिल की गोल

गोल गोल घुमे दिल की वॉल

खुमारी

उतर गयी खुमारी

चढ़ गयी बेताबी

लुट गयी दुनिया

उजड़ गयी जवानी

अपने ही हाथों

तहस हो गयी जिंदगानी

बची ना अब कोई आस

साथ छोड़ गयी परछाई भी अपनी

देख हश्र ये

जिन्दगी भी रो पड़ी

तिल तिल तडपता देख

ओर जीने की तम्मना ना रही

खुमारी उतरने से पहले ही

जिन्दगी बेजार हो गयी

Wednesday, March 17, 2010

मुलाक़ात

तलाश अभी जारी है

ख़ुद से ख़ुद की मुलाक़ात अभी बाकी है

हसरतें अधूरी सी है

प्यास अभी बाकी है

ललक कुछ कर गुजरने की है

अब तलक क्या खोया क्या पाया

ये चिंतन अधूरी है

है तलाश किसकी नहीं मालुम

फिर भी तलाश जारी है

शायद अनजाने मैं ही सही

क्योंकि ख़ुद से ख़ुद की मुलाक़ात

अभी तलक बाकी है

सफलता की मिशाल

ख़ुद ने ख़ुद को प्रोत्साहित किया

कदम बढ चले नई मंजिल की ओर

शिखर कामयाबी का

कल तक जो लगता था दूर

आज वो लग रहा बहुत करीब

फासला चाँद कदमो का मिटने को है त्यार

इतिहास दोहरायेगा ख़ुद को

ओर बन जायेगी एक नई पहचान

स्वर्ण अक्षरों में लिखी जायेगी

सफलता की ये मिशाल

Tuesday, March 16, 2010

मधुर संदेश

खिलती कलियाँ बहते झरने

गीत सुनाये नित नए

जोश नया उमंग नई

सुन के कण कण में बस जाए

भूल कल को जी लो इस पल को

मधुर संदेश कहे ये तो

भोली भाली

दिल हो जिसका काला सूरत हो भोली भाली

सूरत पे उसकी ना जाना यारों

ऐसे लोग नहीं होते खतरे से खाली

पछताना ना पड़े कभी

इसलिए अभी से करलो ऐसे लोगो से दूर किनारी

Wednesday, March 10, 2010

छत्र छाया

अंगुली आप की छुट गयी

यादें बस पास रह गयी

आप के आशीर्वाद की छत्र छाया में

ह़र अरमान ह़र सपने साकार हो गए

कमी आपकी ह़र पल खलती है

ह़र पल जिन्दगी आपको ही सुमिरन करती है

स्वर्गलोक गमन की इस पुण्य तिथि

आंसुओ से भींगे दो फूल हमारे भी

हे पिता श्री आप अपने श्री चरणों में स्वीकार करो

कडवी बातें

चुभती है कडवी बातें

अच्छी लगती है मीठी बातें

सारा खेल ही है बातों का

बातों की बात निराली

कहीं ह़र लेती है प्राण बातें

कहीं बन जाती है संजीवनी बातें

सोच समझ कर करो बातें

छोड़ कडवाहट को

जीत लो जग को मीठी बातों में

मिथ्या

जहा पग पग बिखरे पड़े मिथ्या के बोल

चल नहीं सकती उस राह रिश्ते की डोर

जहा मिथ्या है सबसे बड़ा पाप

वही रिश्ता है सबसे पाक

रखनी है अगर रिश्ते की लाज

तो छोड़ना पड़ेगा मिथ्या का साथ

Monday, March 8, 2010

ख्यालों में

दोस्तों को लोग याद करते है यदा कदा

पर दुश्मनों को करते है सदा

काश हम भी दुश्मनों की गिनती में होते

कम से कम आपके ख्यालों में तो ह़र पल होते

दर्दनाक जिन्दगी

खो गयी जिन्दगी अकेलेपन में कहीं

छुट गयी बचपन की यादें

जिन्दगी की रफ़्तार में कहीं

गुम हो गयी मुस्कराहट कहीं

रह गयी जिन्दगी काँटो में उलझ कहीं

शायद नज़र लग गयी ख़ुशी को कहीं

तभी छुट गया ह़र लहमा कहीं

ओर रह गयी बस आंसुओ में लिपटी

दर्दनाक जिन्दगी की कहानी कहीं

अपना रंग

ह़र रंगों में है एक रंग अपना

रंगों की दुनिया से ही सजा है दिल अपना

प्रेम रंग है सब का सपना

दुआ करो इस होली मिल जाये कोई रंग अपना

Saturday, February 27, 2010

कठपुतलियां

होती है कठपुतलियां बेजान

फिर भी इशारे पर करती है नाच

निपुण होता है वही कलाकार

जिसने जानली हो इस कला की पहचान

महारथी हो चाहे कितने भी बड़े पारंगत

अगर डाल न पाये जान बेजान कठपुतलियों में

तो सारी कला है बेकार

प्रेम सुधा

प्रेम सुधा तुम जब बरसाती हो

इन मद भरी आँखों से

बेसुध हो जाती है दुनिया सारी

देख तेरी सुनहरी हिरनी सी चंचल काया

होश खो ठहर जाती है

एक पल के लिए दुनिया सारी

पहाड़

निश्चल खड़ा पहाड़

कह रहा है पुकार

अडिग रहो करम पथ पे

ना करो अभिमान

देखो मुझको अविचलित खड़ा हु

सीना अपना ताने

चाहे आओ आंधी या तूफ़ान

डिगा ना पाये मेरा स्थान

तुम भी खड़े रहो मेरी तरह

करम पथ पे अपने

बस मत करना अभिमान

शब्दावली

सरल सहज सुगम माध्यम

को आसान होता है समझना

कठिन शब्दावली होती है थोड़ी भिन्न

समझ नहीं आये तो कर देती है अर्थ भिन्न

फेर सारी मेहनत पे पानी

व्यर्थ चली जाती है सारी मगज मारी

तोता मैना

तोते से बोली मैना

सुनलो जी मेरा कहना

हरी भरी वादियों के बीच

हो सुन्दर सी अपनी बगिया

खोलू खिड़की तो दिखे

चन्दा में तेरा ही चेहरा

तोते से बोली मैना

सुनलो जी मेरा कहना

रहे सलामत प्यार ये अपना

मिलके बुना जो सपना

सचमुच वो हो जाये अपना

तोते से बोली मैना

सुनलो जी मेरा कहना

तोते से बोली मैना

Tuesday, February 23, 2010

होली मिलन

अपूर्व है होली का मिलन

ह़र बेर भुला रंगों के रंगों में

रंग जाते है ह़र जन

चढ़ जाता है जब होली का रंग

गले लग जाते है दुश्मन भी तब

अपूर्व है होली का मिलन

आत्म मंथन

सृजन करे मंथन करे

आओ हम सब मिल आत्म मंथन करे

चले नेकी की उस राह पर

पग पग जिसमे कांटे चुभे

कठिन होगी डगर मगर

सेज मिलेगी फूलों की काँटो की राह चलके

इसीलिए क्यों ना फिर

सृजन करे मंथन करे

हम सब मिल आत्म मंथन करे

आओ मिलजुल नेकी की नई राह का सृजन करे

नींद नहीं

नींद नहीं है आँखों में जबसे

तुम मिले आके सपनों में जबसे

करवटे बदल रहे है उसी पल से

ढूंढ़ रहे है सितारों में तुम्हे उसी पल से

पलक झपकती नहीं एक पल के लिए

सपना कहीं टूट ना जाये एक पल के लिए

नींद अब बस आती नहीं उस दिन से

तेरी तस्वीर बनी इन आँखों में जिस दिन से

खुशहाली

गुजरे कल को भूल जाओ

आने वाले कल की चिंता करो

भूत से निकल भविष्य को सुमरन करो

रहना है खुशहाल तो मेरे दोस्त

वर्तमान में जीना सीखो

Saturday, February 20, 2010

होली सखी संग

सुन रे सखी री

ओ मेरी हमजोली

ना खेलो आँख मिचोली

आ खेले हम तुम होली

मच रही है धमाल

उड़ रही है गुलाल

आ रंग दे तेरे भी गाल

सुन रे सखी री

ओ मेरी हमजोली

ना करना इनकार

आ रंग ले प्यार के रंगों को

होली के रंगों के साथ

भींगे तेरी चुनर

उड़े अबीर गुलाल

सुन रे सखी री

ओ मेरी हमजोली

पिता की जरुरत

चला जिस अंगुली को पकड़

वो अंगुली छुट गई

शायद रब को चलने के लिए

मेरे पिता की जरुरत पड़ गई

तभी बिखर गई मेरी दुनिया

ठहर गए कदम

रब ही जाने उसने ऐसा क्यों कर डाला

मुझ बेबस लाचार से

मेरे बाबा ( चाचा ) का हाथ क्यों छुड़ा डाला

Friday, February 19, 2010

अक्षरों का खेल

अक्षरों का खेल है सारा

जैसे चाहो वैसे सजालो

मन माफिक शब्द बनालो

है अक्षरों का मेल अनूठा

विचित्र बड़ा ही है शब्दों का मेला

जैसे हर शब्दों का अर्थ है निराला

वैसे ही हर अर्थों की भी है अपनी कहानी

हर कहानी की है अपनी जुबानी

ओर बनते बिगड़ते कहानी जुबानी

बन जाते है कुछ शब्द अनोखे

अनोखे शब्दों के अर्थ भी होते है अजूबे

Thursday, February 18, 2010

छोटी सी मुलाक़ात

छोटी सी एक मुलाक़ात

सवालों से घिरी दास्तान

फिक्रमंद दोनों इंसान

एक गाये झूटे आलाप

दूजा कहे सच्ची बात

अन्तर है गहरा

राह नहीं आसान

इसलिए बन गई एक छोटी सी मुलाक़ात

दोस्ती की पहली और आखरी मुलाक़ात

गलतियां

गलतियां सबक बनती है

सबक इम्तिहान बनती है

इम्तिहान परख बनती है

परख दर्पण बनती है

ओर दर्पण झूट नहीं कहता है

रोशनी

थक गए नयन

राह तेरी तकते तकते

पर तुम आए नहीं

ओर बंद हो गई पलके

निहारेंगे तुम्हे कैसे

आओगी तुम जब पास

रोशनी नहीं होगी जब

इन आँखों के पास

अधूरी पहचान

घड़ी वो भी आई

दो अजनबी मिले दोस्तों की तरह

रूबरू हुए एक दूजे से

बैठे आमने सामने

सूरत उनकी तब भी नजर नही आई

हिजाब पहन रखा था

जिससे सिर्फ़ आँखे नजर आई

दोस्त बन गए

मगर खूबसूरती के दीदार को

नजरे इनायत ना हो पायी

पहचान अधूरी की अधूरी ही रह गई

Tuesday, February 16, 2010

राह गुजर

अजनबी तुम हो

अजनबी हम है

फिर ये कैसा मिलन है

पर लागी तुमसे लगन है

की है बातें अभी तक

जाना है एक दूजे को बस यहीं तलक

कशीश फिर भी है मिलन की

दीवानगी की हद तक

तस्वीर जो बनी अब तलक

शायद तुम ही वो हमसफ़र

हो अजनबी फिर भी हो राह गुजर

एक पल

सोचा ना था कभी

एक पल ऐसा भी आयेगा

अजनबी कोई दोस्त बन जायेगा

जज्बातों से खेल

दिल के टुकड़े कर जायेगा

विश्वास का क़त्ल कर

रिश्तो को मौत की नींद सुला जायेगा

सोचा ना था कभी

एक पल ऐसा भी आयेगा

सवाल

निकला था सवाल का हल ढूढ़ने

पर सवालों के जाल में उलझ

ख़ुद एक सवाल बन रह गया

उतर जिस किसीसे भी पूछा

उसने ही एक नया सवाल पूछ डाला

ओर मैं सवालों की भूल भूलैया में

ख़ुद दुनिया के लिए सवाल बन रह गया

पिता की याद

सपने जो आपने संजोये

साकार हम कर गए

पर हमें आंसुओ के साथ छोड़

आप अंतविहीन यात्रा पर

रब के पास चले गए

कमी आपकी सदा खलती है

बिन आपके कामयाबी भी अधूरी लगती है

दुआ है बस अब इतनी सी

आप के मार्ग पे चलते रहे

आशीर्वाद आपका सदा हम पे बना रहे

प्यार का भूत

बुखार प्यार की उतर गई

देखा जो उनकी आँखों में

सच्चाई पता चल गई

दिल्लगी थी दिल लगी नहीं थी

नादान हमने नादानी में

बीमार दिल को बना दिया

दिल और दिल्लगी के इस खेल में

ख़ुद को जला लिया

ऐतबार इसको किसी का ना रहा

नफरत ये ख़ुद से करने लगा

भूत प्यार का उतरने लगा

समस्या

बेताबी बडती गई

उलझाने उलझती गई

किनारा कोई नजर आया नहीं

छोटी समस्या विकराल हो गई

परिस्थिथिया बदल विषम हो गई

साधारण पहेली अनबुझ बन कर रह गई

झूठा

है जो ऊपर से नीचे तक झूठा

है जीवन जिसका झूठा

है जिसकी बुनियाद ही झूठी

वो कैसे करेगा बात सच्ची

वचन

परम्परा निभानी है

रस्म सदियों पुरानी है

आस्था बनी रहे

विश्वास टिका रहे

इसलिए सत्य पे अटल रहना है

दिया वचन निभाना है

Friday, February 12, 2010

शुभचिंतक

लगता है आज कल अपनों से कम

और अजनबियो से मुलाकाते ज्यादा होती है

तभी परिचय अपना दे पाते नहीं

संदेश भेजने में गुरेज करते नहीं

शुभचिंतक ख़ुद को कहते हो

पर नाम बताने से डरते हो

अधूरे खाब

लोट के चल दिए घर को हम अपने

समेटे यादों को दिल में

संजोये थे सपने जो

खाब अधूरे रह गए वो

हम तुम मिल नहीं पाये

दोस्त बन नहीं पाये

पर अजनबी बन दूर चले आए

ओर फ़साना बनने से पहले ही

किस्से खत्म कर आए

जज्बा

जज्बा हो दिलों में तो

कुछ कहने की जरुरत नहीं

कुछ कर गुजरने के लिए

कुछ साबित करने की जरुरत नहीं

Monday, February 8, 2010

रहस्य

लुका छिपी आँख मिचोली

कर दिया मुश्किल जीना इसने

नचा रही भूल भुलैया में

पहेली हमें बुझा रही

रहस्य क्या है समझ आया नहीं

वो कौन है जान पाये नहीं

कब उठेगा राज से परदा

शायद खुदा को भी मालूम नहीं

उत्पीड़न

नारी शौषण को देख

विचार मन में कोंधा

निष्ठुर क्यो है इतना मानव

प्रतिशोध है कैसा उसके मन समाया

जन्म दिया जिसने उसे ही बेरी क्यों बनाया

कलंकित कर दिया इस धारा ने

सारी मानव जात को

दुर्भाग्य आज तलक नारी उत्पीड़न के खिलाफ

आवाज ना कोई बुलंद कर पाया

कब होगा अंत इस पीड़ा का

कोई कह पाया नहीं


Saturday, February 6, 2010

किवदंती

तराशा ताजमहल जिन्होंने

हुनर था हाथों में उनके

प्रेम को पथरों पे उकेरा ऐसे

इबादत हो खुदा की जैसे

किवदंती जिन्दा बन गई

प्रेम कहानी अमर कर गई

परम्परा

युग युगांतर से चली आ रही जुबानी

परम्परा ये सदियों पुरानी

अखरती है दुनिया को प्रेम कहानी

रास आती नहीं उनको प्रेम दीवानी

क्योंकि उनकी नहीं कोई प्रेम कहानी

परछाई

आकृति एक नजर आई

गौर से देखा तो साया था

पूछा उससे कहा उसने

परछाई हु तेरी

संग संग तेरे चलती हु

कभी आती हु कभी जाती हु

अकेला तू है नहीं

मैं हु साथ तेरे

यह बत्ताने आती हु

Thursday, February 4, 2010

बोल

बोल बोल का फर्क है

बोल बोल का महत्व है

नहीं है जिन्दगी में ह़र चीजों का मोल

कुछ चीजें तो है अनमोल

इसलिए ह़र बोल को सोच समझ कर बोल

तोल मोल के बोल

बोल कुछ ऐसे बोल

जिसमे मिला हो अमृत का घोल

Wednesday, February 3, 2010

गोविन्द

कृष्ण मनोहर माधव गिरधारी

हरे गोविन्द हरे मुरारी

हे कलयुग अवतारी हे त्रिपुरारी

सुनले विनती हमारी कह रही सखियाँ सारी

बृज मंडल पधारो हे मौर मुकुट धारी

खेलन होली आयी राधा ले पिचकारी अपने साथ

हम रंगे तुमको प्रेम रंगों में

तुम रंगों हमको श्याम अपने रंगों में

सुनके हमारा विनम्र निवेदन

खेलन होली आ जाओ हे नाथ

कृष्ण मनोहर माधव गिरधारी

हरे गोविन्द हरे मुरारी

सब्र

पल इन्तजार के खत्म होते नहीं

ज्यौं ज्यौं समय लगे बीतने

त्यौं त्यौं इन्तजार लगे बड़ने

पल पल लगने लगे सदी समान

जितना ज्यादा इन्तजार

उतना ही ज्यादा इन्तजार

इसलिए करो सब्र से इन्तजार

मीठा लगने लगेगा इन्तजार

Tuesday, February 2, 2010

रंगों की मस्ती

आयी है रंगों की बारात

लेके आयी होली अपने साथ

कोई मारे पिचकारी कोई उड़ावे गुलाल

रंग बी रंगे रंगों में रंग गयी दुनिया सारी

हरा पीला नीला लाल गुलाबी

छा गयी रंगों की घटा निराली

बरस रही रंगों की रागिनी

खो गयी दुनिया रंगों की मस्ती में भूल सारे दुःख

हसीन शाम

लहमा लहमा कह रहा है

बूटा बूटा सुन रहा है

कितनी हसीन है ये शाम

सूरज लगने लगा है ढल

छा गयी अम्बर में लाली

चाँद नजर आने लगा

छटा बनी अनुपम निराली

ये शाम कित्नु हसीन है

लहमा लहमा कह रहा है

बूटा बूटा सुन रहा है

Monday, February 1, 2010

युवा

स्वर विरोध के उठने लगे

मुखर युवा होने लगे

शक्ति संगठित होने लगी

विद्रोह का विगुल बजने लगा

एक नयी क्रान्ति होने लगी

करके लेगें दम खात्मा आतंक का

इस जय घोष से अमन की बयार बहने लगी

शांति की सूत्रपात होने लगी

दो शब्द

कभी अपने लिए भी लिखता हु

जब कभी दिल रोता है

दो शब्द बुनता हु मैं भी

तन्हाईओं के अकेलेपन में

खुद से लड़ता हु जुड़ता हु

कोई बात दिल को छू जाये

उसे शब्दों में पिरों लिख लेता हु

अक्सर औरों के लिए लिखता हु

पर जब दिल भर आता है

दो शब्दों को अपने लिए भी लिख लेता हु

रोते रोते

रोते रोते ये पता चला

रोने को ओर आंसू बचे नहीं

उमड़ा था आंसुओ का जो सैलाब

सुखा दिया उसने सभी नदी तालाब

अब जब आंसू ही बचे नहीं

फिर किस कर के रोये

इसलिए मन ही मन रोये ताकि

आंसू की जरुरत ही होवे नहीं

कहना है बस इतना सा

दिल रोता रहे ओर आंसू नजर आये नहीं

अभिशप्त

जिन्दगी मेरे लिए अभिशप्त है

चलना इसपेमेरे लिए दुर्भर है

जीने की कोई ललक मेरी बची नहीं

फिर भी खुदा है की मेरे को मौत देता नहीं

कौल

कौल हमने लगायी तीन बार

पर उनको समझ नहीं आयी यार

जाग गया मोहला सारा

सुन शोर बौखला आया

आधी रात गए

किस गधे ने है शोर मचाया

देख ये तमाशा

जोर से मैं चिल्लाया

बीबी खोल नहीं रही दरवाजा

उसको जगाने मैं तो बजाऊंगा बेन्ड बाजा

हो रही हो तुम लोगों को तकलीफ

करलो कान बंद तुम सारी भीड़

इतने में बीबी की नींद जगी

समझ आ गया सारा माजरा

फिर पी ली है हद से ज्यादा

पकड़ बाल हमको ले गयी घर के अन्दर

ओर बंद कर दिया गुशलखाने के अन्दर

अपनी बात

होता जो कोई माध्यम पास

कह पाता अपनी बात

सहज रह सकता नहीं

भावनावों को व्यक्त कर सकता नहीं

मुश्किल तो यही है यारों

चाह कर भी अपनी बात कह पाता नहीं