POEMS BY MANOJ KAYAL
गुमान नहीं अभिमान है
मेरे पिता पे मुझे नाज है
झुके नहीं टूटे नहीं
विपता जब भी आयी
शूरवीरों की तरह डटे रहे
साथ छोड़ चले गए अपने भी जब सभी
हिम्मत हारी नहीं तब भी कभी
आत्मविश्वास के बलबूते
पाली पुन: शोहरत सारी
धूमिल हो गयी थी जो
विपति काल में
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