POEMS BY MANOJ KAYAL
उस राह कभी ना जाता
जो कभी मेरी मंजिल ना थी
पर ह़र कदम सपने टूटते गए
कदम निराशा के भंवर में
खुद ब खुद गर्त की ओर चलते गए
ना किसी से कभी कोई गिला रही
ना किसी से कभी शिकायत रही
अपने कदम रोक ना पाया
उसमे औरों की क्या गलती थी
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