RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Monday, December 13, 2010
बीते लहमे
जब भी मुस्कराना चाहा
जिन्दगी ने रुला दिया
जख्मों को फिर से ताजा बना दिया
सितम बीते लहमों ने ऐसा डाह दिया
आने वाला ह़र पल मनहूस बना दिया
जब भी मुस्कराना चाहा
जिन्दगी ने रुला दिया
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