POEMS BY MANOJ KAYAL
तन्हाई में घिरे
तन्हा अकेले बैठे रहे
मंथन विचारों का चलता रहा
खामोश लब गुमसुम से
दिल की धड़कने गिनते रहे
अकेलेपन की तन्हाई में
क्यों गुम हो गयी जिन्दगी
जबाब इसका तलाशते रहे
No comments:
Post a Comment