POEMS BY MANOJ KAYAL
जख्म तुने इतने दिए
इन्तहा सजा की हो गयी
अब तो दर्द भी दर्द ना रहा
इसकी तो आदत सी हो गयी
अब ना आंसू बचे
ना जीने की तमन्ना ही रही
जुल्म सहते सहते
जिन्दगी जिन्दा लाश हो गयी
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