RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Friday, September 3, 2010
रुसवा
यूँ लगे , जिन्दगी हमसे रुसवा हो गयी
चहरे पे उदासी की लकीरें उभर गयी
अनजानों के बीच
जिन्दगी कैद हो रह गयी
लाख जतन की
पर वो खुशी फिर मिल ना सकी
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