POEMS BY MANOJ KAYAL
परेशान नहीं हैरान हु
देख इन रीती नियमों को
अन्धविश्वास में जकड़ी जिन्दगी
गुलाम बन गई सामाजिक कुरित्यों की
जंजीरे कब टूटेगी
दासता से मुक्ति कब मिलेगी
पर बिडम्बना है यही
आज भी मानव है इसी का आदि
देख इस दुर्दशा को
परेशान नहीं हैरान हु में
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