POEMS BY MANOJ KAYAL
तन्हा अकेला खड़ा था भीड़ में
कोई भी अपना ना था कहने को पास
जिसे भी माना अपना यार
वो ही निकला बेईमान
मुक़दर ही ऐसा मिला
यकीन कहीं खो गया
पुकारा खुदा को
मगर वो भी अनसुनी कर गया
हमको हमीसे अकेला कर गया
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