POEMS BY MANOJ KAYAL
कला हुस्न की मोहताज नहीं
मंथन है ये तो विचारों की
स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त सुरों की
प्रेरणा है ये तो आत्मसम्मान से जीने की
No comments:
Post a Comment