Monday, May 24, 2010

संकुचाहट

बड़ी बेमुरब्बत है जिंदगानी

जन्म लेते है जब

तब बजाते है ढोल थाली

हो जाये कोई भूल तो

जीवन भर देते है गाली

मर जब जाते है

झूटे आंसू बहाने चले आते है

मगर जरुरत पड़े जब कभी

तब पहचान से इनकार कर जाते है

क्यों गले पड़ रहे हो

क्यों हमसे नाता जोड़ रहे हो

बोलने में भी नहीं संकुचाते है

सच ही तो है

जिन्दगी सचमुच बड़ी ही

बेरहम बेमुरब्बत है

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