मंजूर उनको ये ना था
साथी बने कोई हमारा
ये उनको गंवारा ना था
पर जालिम दिल की लगी ऐसी थी
हुस्न ओर शबाब से ही दिल की महफ़िल थी
दिल था की अपनी आदते बदलता ना था
मुश्किल यही थी
इस कारण उनकी और हमारी जमती ना थी
ओर कहानी शुरू होती नहीं थी की
कहानी खत्म हो जाती थी
No comments:
Post a Comment