गुजरे कल की किताब खोलना नहीं चाहता
गुजरा कल अच्छा ना था
एक डरावना सपना था
इसलिए वक़्त के गर्द से दबी किताबों के पन्ने
पलटना नहीं चाहता
जब कभी चलती है पुरानी यादों की आंधी
पन्ने लगते है ऐसे फरफराने
देख के जिसको रूह भी सहम सी जाती है
एक पल के लिए साँसे भी थम सी जाती है
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