POEMS BY MANOJ KAYAL
बदल गया मैं औरों के लिए
जो खुद ना बदल सका अपने लिए
सिखने लगा हु
ग़मों की आँधियों में
अविचलित खड़े रहना
धैर्य और संयम से निर्णय करना
इन कंधो पे जो जिम्मेदारी आन पड़ी है
द्वेष ईष्या को छोड़
एक नई जिन्दगी की शुरुआत करनी है
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