POEMS BY MANOJ KAYAL
दर्पण देखा तो शक्ल अनजानी सी नज़र आयी
गौर से करीब जाके देखा तो
जानी पहचानी नज़र आयी
यादों को टटोला तो
खुद की प्रतिबिम्ब नज़र आयी
वक़्त इतनी तेजी से कब गुजर गया
अहसास ही ना हो पाया
ओर वक़्त की इस रफ़्तार में
मानव खुद की शक्ल भी भूला गया
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