जिस्म जब तलक बिकता रहेगा
अंजुमन की उस चौखट पे
मेला तब तलक लगता रहेगा
इस शौर में डूबी चीत्कार भरी आवाज़
कोई सुन ना सकेगा
अँधेरी भरी जिन्दगी
यूँ ही घुट घुट
इन बदनाम गलियों में
कब ख़ाक ये सुपुर्द हो जायेगी
किसी को खबर भी ना होगी
जिन्दगी की तरह कब्र भी सूनी रह जायेगी
दुआ करने के लिए भी कोई अपना ना होगा
जिन्दगी सिसक सिसक कर यूँ ही मर जायेगी
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