RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Thursday, May 20, 2010
चाँद की आस
निकलो जब घर से बाहर
तो यूँ ना इतराया करो
खुली जुल्फों को
यूँ ना लहराया करो
बैठे रहते है जिस चाँद की आस में
उसे यूँ ना घूँघट में छिपा के रखा करो
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