POEMS BY MANOJ KAYAL
ढूंड रही है नजरे
बिछा के पलके
पर अभी तलक नज़र आयी नहीं
साये की झलक भर
अनजाना अजनबी वो साया
चुपके से जो सपनों में चला आया
नींद हमारी चुरा ले गया
अब तो बस बैचैन है राते
करवट बदलते बीत रही है राते
No comments:
Post a Comment