Friday, April 23, 2010

चारदीवारी

सिमट गयी जिन्दगी चारदीवारी में

आँखे हो गयी सूनी

दिल हो गया पत्थर

अकेलेपन तन्हाई इनका ही अब साथ है

जिन्दगी खुद से अनजान है

आंसुओ का भी अब तो नहीं साथ है

तड़प रही है जिन्दगी

हार गयी मैं खुद से

कह रही है जिन्दगी

सिमट गयी है जिन्दगी

चारदीवारी में कैद हो गयी है जिन्दगी

No comments:

Post a Comment