Saturday, April 24, 2010

वो भी जाने

बुलंद है होसले इतने आज

खुदा भी अगर कुछ मांगे आज

पल में निकाल दे दु दिल उसके हाथ

वो भी तो जाने

दिल लगानेवालों का क्या होता है हाल

मकसद

उफनती लहरों पे चले जा रहे है

बहते अश्को में डूबे जा रहे है

उजड़ गयी है वादियाँ

लुट गयी है दुनिया

सितम वक़्त ने ऐसा दिया है

ह़र कोई बदला बदला लग रहा है

खत्म अब आस है

जीने के लिए ना कोई मकसद पास है

अनुभूति

कुछ तो है कहीं तो है

अहसास तभी तो है

एक अनछुई सी अनुभूति का है

बहुत ही हसीन जज्बातों का मेला है

जज्बातों के इस मेले में

ह कोई

जो अपनी ओर आकर्षित किये जा रहा है

अनुभव जिस आकृति का हो रहा है

दिल मानस पटल पर उसकी तस्वीर बना रहा है

जमाने का रंग

ओ गाँव की छोरी

मैं शहर का छोरा

कैसे होगा मिलन ये तेरा मेरा

बदल गया है ज़माना

भाता नहीं नए जमाने का रंग

तुझको जरा भी

ऐसे में कैसे करलू

जीवन साथ बिताने का वादा

चुपके से

ढूंड रही है नजरे

बिछा के पलके

पर अभी तलक नज़र आयी नहीं

साये की झलक भर

अनजाना अजनबी वो साया

चुपके से जो सपनों में चला आया

नींद हमारी चुरा ले गया

अब तो बस बैचैन है राते

करवट बदलते बीत रही है राते

लाजबाब

कहते है लोग आप बड़े ही दिलवाले है

ह़र एक से दिल लगाने तैयार है

अंदाज बड़ा ही आशिकाना है

सुन आप की हँसी

जाते कदम भी थम जाते है

पर आप बड़े ही संग दिल इंसान है

दिल लगा के

दिल जलाना ही आप का काम है

फिर भी सारी तितलियाँ आप पे मेहरबान है

कोई कुछ भी काहे

आप आशिक लाजबाब है

सुर्खियाँ

सुर्ख़ियों में रहने वालों का

जीवन औरो से कुछ अलग ही है

हो अगर अच्छे कारणों से

तो जीवन जीने का रंग कुछ ओर ही है

बिरले ही होते है वो

जो सदा सुर्ख़ियों में बने रहने को

जीवन से जदोजहद करते रहते है

मौसम के रंग

उथल पुथल बदल फिरत है

मौसम के रंग हज़ार

कहीं बह रही पावन रूमानी

कहीं खिल खिला रही वादियाँ फूलों की

रंगीन है मौसम का मिजाज

मिलता है सकून

जब चलती है ठंडी वयार

उथल पुथल बदल फिरत है

मौसम के रंग हज़ार

दूर

भुलाना चाहो अगर किसीको

दूर जाना चाहो उसके साये से भी

करनी होगी यादों की खिड़कियाँ बंद

दफ़न कर देनी होगी ह़र बात सीने के अन्दर

तभी भूल पावोगे

परछाई से दूर जा पावोगे

Friday, April 23, 2010

सच्ची पहचान

कल तक जो पहचान थी

वो आज गुमनाम है

इस बदले समय में

अपनों के लिए भी अनजान है

वक़्त सदा एक सा नहीं होता

समय बड़ा बलवान है

बुरे वक़्त ही होती है

अपनों की सच्ची पहचान

चारदीवारी

सिमट गयी जिन्दगी चारदीवारी में

आँखे हो गयी सूनी

दिल हो गया पत्थर

अकेलेपन तन्हाई इनका ही अब साथ है

जिन्दगी खुद से अनजान है

आंसुओ का भी अब तो नहीं साथ है

तड़प रही है जिन्दगी

हार गयी मैं खुद से

कह रही है जिन्दगी

सिमट गयी है जिन्दगी

चारदीवारी में कैद हो गयी है जिन्दगी

शिकायत

जिन्दगी तुझ से कोई गिला नहीं शिकवा नहीं

जो तुने दिया वो काफी नहीं

फिर भी तुझसे कोई शिकायत नहीं

अरमा थे बहुत पर सारे पूरे हो ना सके

मौके तुने दिए नहीं

ओर हासिल खुशियाँ हुई नहीं

फिर भी तुझसे गिला नहीं

तम्मना है अब बस इतनी सी

फुर्सत अगर मिले कभी

तो घर मेरे भी आना जिन्दगी

आके गले हमको भी लगा जाना ये जिन्दगी

तुम आओ या ना आओ

पर अब कोई शिकायत नहीं तुझसे ये जिन्दगी

हमारी बात

किया है जो वादा वो पूरा करेंगे

जीवन अपना तेरे संग

आधा आधा बाँट लेंगे

यू रहो ना उदास

करो मेरा विश्वास

थामा है जो हाथ तेरा

कैसे तुने सोच लिया

बीच भंवर में छोड़ दूंगा साथ

हम तो है तेरे ही सर के ताज

याद रखना हमारी ये बात

Sunday, April 4, 2010

आहट

वक़्त थम सा गया

साँसे रुक सी गयी

महबूब की आहट जो सुनी

दिल में धड़कन लोट गयी

चहरे पे मुस्कान खिल गयी

स्वामी

श्रद्धा सुमन अर्पण करू

करो आप स्वीकार

दर्शन देने स्वामी चले आओ एक बार

पुकार रही अर्धांगी आप का ही नाम

Saturday, April 3, 2010

श्रद्धा के फूल

छुट गयी आप की वो अंगुली

पकड़ जिसे चलना सीखा

रह गयी सिर्फ यादें

प्रेरणा बन जीवन मार्ग दर्शाने को

आशीर्वाद ऐसा देना हमें

आपकी दिव्य पुंज से

सुशोभित रहे जीवन हमारा तो

भूल चुक हुई हो तो करना हमें माफ़

अपने श्री चरणों में

करना हमारी श्रद्धा के फूल स्वीकार

ना कोई अपना

हमने जिसको भी अपना कहा

उसने ही हमको धोखा दिया

ऐतबार अब रहा नहीं

दिल अब कुछ कहता नहीं

सुनी हो गयी आँखे

खाली रह गयी बातें

थम गयी साँसे

खो गयी राहे

मिला धोखा ही धोखा

मिला ना कोई भी अपना

कैसे

दिल बनाया खुदा ने प्यार करने के लिए

कहा रखना सदा इसे संभाल के

पर चुरा लिए दिल मेरा तुने

अब कैसे किसी ओर से प्यार करू

मुसलाधार मेघ

बरस रही मेघा मुसलाधार

नाम नहीं ले रही थमने का

लगी कहर बरपाने मेघा

उफन ने लगी नदियाँ

भर गए शहर तालाब

ह़र ओर पानी ही पानी

डूब गए घर बार

तांडव मचाने लगी बाड़

देख के इस मंजर को

कह उठा मन चीत्कार

अब बस भी करो मेघा रानी

ओर ना बरसाओ पानी

फर्क

डगर डगर

टहर टहर

शहर शहर

पहर पहर

मगर अगर

करे है फर्क

यू ही बीत रही जिन्दगी

भूल के लक्ष्य

भटक रही जिन्दगी

समझ ना आई बात

लुट गयी जिन्दगी

डगर डगर

टहर टहर

शहर शहर

पहर पहर

घूम रही जिन्दगी

नामुमकिन

दिल अभी तलक भरा नहीं

तेरे हुस्न में है कितना दम

देखे बांधे रख सके हमें आप कब तलक

दीवानगी है खेल नहीं

मेरे लिए तुम किसी मुमताज से कम नहीं

पर बांधे रख पाना हमें मुमकिन नहीं

खो जाये

दिल कह रहा है तू अब आ भी जा

मैं छुपा लू तुझे बाहों में

तू छुपा ले मुझे तेरे आँचल में

खो जाये एक दूजे में

साँसों की डोर बंधी रहे

एक दूजे की चाहत से

सुन ले पुकार

दिल कह रहा है तू अब आ भी जा

बरस रहा अम्बर

बरस रहा अम्बर

बोल रही धरती

खिल उठी जिन्दगी

बारिस की शबनमी बूंदों से

लहरा उठी जिन्दगी

नए अंकुरों में

फ्रस्फुटित हो चली जिन्दगी

बरस रही मेघा

चमक रही बिजली

गरज रहा अम्बर

बोल रही जिन्दगी

काश

काश तुम पास होती

जिन्दगी सपनों सी हसीन होती

चन्दा की चांदनी होती

तेरे मेरे मिलन की रात होती

रुक जाती घड़िया थम जाते पल

काश तुम जो पास होती

छुपा चाँद

तेरे चाँद से मुखड़े के आगे

सितारों की महफ़िल भी फीकी है

क्यों झांके बाहर

तस्वीर तेरी जब दिल में बसी है

घूँघट तेरा उठाने हमें आना ही होगा

छुपे चाँद को नयनों के आगे लाना ही होगा

Thursday, April 1, 2010

देर

कहनी थी जो बात

वो तुम ने कह दी

अब कैसे काहे हम

तुम ने हमारे दिल की बात कह दी

करते हो प्यार हमसे

कहने में इतनी देर क्यों लगा दी

करीब

खिला गुलाब महकी फिजा

खली पलके उडी जुल्फें

पैगाम ये ले आयी

यार तुम हो दिल के करीब

ये हमको बतला गयी

तुम हो

आती नहीं हमें आपकी तरह

करना कविता और शायरी

कोशिश फिर भी की है

दिल की बात आप की तरह कहने की

सुन जिसके बोल दिल मचल उठे

ह़र साँसों में जिनका ही नाम धड़का करे

प्रियतम मेरे हसीन हो या ना हो

पर जो दिल को सबसे अजीज हो

वो तुम हो तुम हो

बातों में

गम इस बात का नहीं

हम आपसे बिछुड़ गए

दर्द है इस बात का

आप भी औरो की तरह बेवफा निकले

सिकवा कोई अब है नहीं जिन्दगी से

मगर अफ़सोस है इतना सा जरुर

क्यों हम भी आपकी बातों में आ गए