RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Friday, February 12, 2010
शुभचिंतक
लगता है आज कल अपनों से कम
और अजनबियो से मुलाकाते ज्यादा होती है
तभी परिचय अपना दे पाते नहीं
संदेश भेजने में गुरेज करते नहीं
शुभचिंतक ख़ुद को कहते हो
पर नाम बताने से डरते हो
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